Tuesday, December 31, 2019

मुझको भी आलोकित कर दो (बाल गीत)



मुझको भी आलोकित कर दो।


सूरज दादा ,सूरज दादा
इतने पीत वर्ण कैसे हो!
लगता है कुंदन के बने हो!
कुंदन थोड़ा मुझमें भर दो।
मैं भी जग में चमका करूँगा।
मुझको भी आलोकित कर दो।

सुबह सवेरे जग जाते हो।
भोर की लाली तुम लाते हो।
कुम्हलाई कलियों को खिलाकर
अंबर में तुम मुस्काते हो।
परसेवा हिय में मेरे भर दो।
मुझको भी आलोकित कर दो।

सर्दी, गर्मी, ठंडी, वर्षा
तुमको कोई रोक न पाया ।
हर मौसम ने करवट बदली पर
तुमको सदा अडिग ही पाया।
मुझमें भी यही दृढ़ता भर दो।
मुझको भी आलोकित कर दो।

तुम ही सृष्टि के संचालक।
तुम ही हो हम सबके पालक।
अनुशासन का मंत्र सिखाते।
नहीं किसी से तुम घबराते।
वही अनुशासन मुझमें भर दो।
मुझको भी आलोकित कर दो।

जब भी तुम विश्राम को जाते।
हम केवल अँधियारा पाते।
अँधियारे को दूर भगाकर
प्राण शक्ति सबमें भरते हो।
उसी ऊर्जा से मुझको भर दो।
मुझको भी आलोकित कर दो।











Tuesday, December 17, 2019

क्रोध...


Kavita, krodh, anger management, chandan, vandan
क्रोध



क्रोध कहो, या कह लो गुस्सा
या फिर इसे कहो तुम रोष
नहीं किसी भी और का,
इसमें  है बस अपना दोष

कहो कभी हम गुस्से से
कुछ भी हासिल कर पाए हैं?
जब भी क्रोध ने हमको घेरा
तब - तब हम पछताए हैं!!!

क्यों कर हम खुद पर ही बोलो
नहीं नियंत्रण कर नियंत्रण कर पाते?
क्यों दूजे के हाथों में हम
चाबी गुस्स्स्से की  दे आते!

जीवन में कटुता य़ह लाता
सुंदरता चेहरे की खाता
य़ह मन को अपने बहकाता
अंत में केवल है पछताता।

तो क्रोध को छोड़ो य़ह दुश्मन है
अपनी काया तो चंदन है
क्रोध का सांप न लिपटे जिसको
ऐसी काया को वन्दन है।
ऐसे ही मन को वंदन है।।

रचनाकार - सुधा सिंह 

Friday, October 25, 2019

प्रयाण कर..

तिरंगा झंडा



प्रयाण कर प्रयाण कर, तू मत किसी से आज डर।
माँ भारती का पुत्र तू, माँ भारती पर नाज कर ।।
देश का प्यारा तिरंगा, झुकने कभी पाए नहीं ।
उत्तुंग शिखर हिमगिरि का, पुकारता प्रयाण कर।।

 प्रयाण कर, प्रयाण कर.....

जाति - पाँती भेदभाव, रंग - द्वेष भूल कर।
मनुष्यता की राह में, सद्भाव का प्रसार कर।।
संत मुनियों की धरा ये, त्राहि त्राहि कर रही ।
आतंक के आकाओं का, समूल तू विनाश कर।।

 प्रयाण कर, प्रयाण कर.....

नापाक इरादों के संग, है शत्रु आगे बढ़ रहा।
चीर कर शत्रु का सीना , देश को निहाल कर।।
ध्वस्त कर शत्रु का दुर्ग, नवराष्ट्र का निर्माण कर।
व्योम पर फहरा तिरंगा, गगन को प्रस्थान कर।।

प्रयाण कर, प्रयाण कर.....

कारवां अतिवात का, गुबार संग ला रहा।
है काल यह निशिथ का , आलोक का प्रसार कर।।
मिसाल वीरता की तू, तू लाल, बाल, पाल है।
तेरी कीर्ति धूमिल न हो, तू कुछ नया विधान कर।।

प्रयाण कर, प्रयाण कर.....

प्राचीन बंध तोड़ दे , और लीक से हटकर तू चल।
पुकारती मंजिल खड़ी, तू राष्ट्र का उत्थान कर।।
हर रोज दिवाली मने, चहुँ ओर बिखरे रोशनी।
दीप जगमगा उठे, रावण का मर्दन मान कर।।

 प्रयाण कर, प्रयाण कर.....         

Sunday, October 13, 2019

माँ शारदे....( गेय वन्दना)

Saraswati puja 


हे शारदे , माँ शारदे, अपनी शरण में लीजिए! 
ज्ञान चक्षु खोलकर, विद्या का वर हमें दीजिए!! 

अज्ञानी हैं, दोषी हैं हम, निर्दोष हमको कीजिए! 

पंथ से भटके हुए हैं , सुलभ पथ को कीजिए!! 

श्वेतांबरा, माँ सरस्वती, चित्त है बड़ा व्याकुल मेरा! 

आध्यात्म का वरदान दे, उत्कर्ष मेरा कीजिए!! 

है तिमिर का आतंक चहुँ दिश, मलिनता आछन्न है! 

इस स्याह कलुषित भीषिका का नाश समुचित कीजिए!! 

मद, मोह, ईर्ष्या, द्वेष हमपर, हावी कभी न हो, ऐ माँ! 

तुम हो दया की मूर्ति उपकार हम पर कीजिए!! 

हे ज्ञानदा, माँ शतरूपा , मैं करूँ आवाहन आपका ! 

सब बंधनों से मुक्तकर, मन को आलोकित कीजिए!! 
  

Saturday, October 12, 2019

बचपन....

बाल्यावस्था
बचपन 

बचपन!!! 
कहो, किस नाम से तुम्हें पुकारूँ! 
बेफिक्री, निश्छलता, निश्चिंतता, 
किस शब्‍द से उच्चारूँ! 

तुमसे जुड़े हर नाम से सुखद पय ही तो 
रिसता पाया! 
धूप हो, बारिश हो, सर्दी हो या गर्मी 
तुमने जीवन को सदा उमंगों से सजाया! 

कभी बाहर, कभी भीतर!
बस धमा-चौकड़ी दिन भर! 
कीचड़ से लथपथ और पसीने में तर! 
धूप से न होता, कभी करियाने का डर! 

कागज की नावें, चलाने की होड़! 
तितली की पूँछ में बांध दी, पतली से डोर! 

घर में मचा हल्ला, मैं सिपाही तू चोर! 
चल आज चढ़ते हैं पेड़, और तोड़ते हैं बोर! 

न भोजन की फिक्र न पढ़ाई की बातें! 
निश्चिंत दिन और निश्चिंत रातें! 

राजा के किस्से, गुड़िया की शादी! 
पापा की डांट से बचाती थी दादी! 

मेजोरिटी विंस और डाईन तेरी! 
नहीं, नहीं डाईन तेरी, न कि डाईन मेरी! 

पल वो सुनहरे और सुनहरी वो यादें! 
रहते तुम दिल में , तुम्हें कैसे भुला दें! 

इस मुरझाई बगिया के, पुष्प फिर खिला दें 
लौट आ, ओ बचपन! तुम्हें तुमसे मिला दें 





Friday, October 4, 2019

हिन्द की गौरव गाथा


Hindi diwas
हिन्दी दिवस 



हिन्द की गौरव गाथा हिन्दी, इसकी महक रूमानी है।
शहरों की ऊँची मीनारों, गांवों की मृदु बानी है।।

मीरा के एकतारे में भी, हिंदी की स्वर लहरी है।
दोहा, छंद, गीतिका इसमें,इसमें किस्से कहानी है।।

रफी लता के गीतों में भी,हिन्दी ही इठलाती है।
यह पंत, निराला, मुन्शी जी,तुलसी , कबीर की वाणी है।।

भोजपुरी, मगही, कन्नौजी ,रूप हैं इसके और कई।
ब्रज,अवधि, बुंदेली, बघेली,खोरठा, राजस्थानी है।।

हर भाव समेटे रहती है,यह मलय पवन - सी बहती है।
इतना विस्तृत भंडार है कि,नहीं कोई इसका सानी है।।

स्मरण रहे कि स्वतंत्रता के, नारे हिंदी में गूँजे थे।
फिर सौतेली अंग्रेजी ,तुम्हें क्यों कर लगे सुहानी है!!

निज भाषा की यह दुर्गति, हमें अतिशय नहीं सुहाती है।
अंग्रेज़ी प्रभुता से लड़ ,हिन्दी की आन बचानी है।।

भूलो मत, ऐ हिन्द वासियों! ये फिरंगी कारस्तानी है।।
हिन्दी की जगमग व‍ह ज्योति,हमें फिर से आज जलानी है।।


स्वरचित
©®सुधा सिंह


















Thursday, September 12, 2019

परीक्षा (विधा- रैप गीत )   


परीक्षा (विधा- रैप गीत ) 
परीक्षा 

आई है परीक्षा, 
कर लो अब तैयारी
खेल कूद छोड़ दो, 
और छोड़ दो दुनिया दारी....*2


माना कि है, छुट्टी आज, 
पर न करो अब, समय बर्बाद 
सुन लो, सुन लो, प्यारे साथियों 
मानो बात हमारी 
आई है परीक्षा, 
कर लो अब तैयारी


गुणा, भाग और जोड़, घटाना 
सब जीवन का ताना- बाना 
पढ़ लो इनको, सभी साथियों 
आएगी होशियारी
आई है परीक्षा, 
कर लो अब तैयारी


फेसबुक , इंस्टा, स्नैपचैट 
सब कुछ है बेकार की बात 
PUBG को भी कर दो साइड 
आई अब किताब की बारी 
आई है परीक्षा, 
कर लो अब तैयारी

जीवन में कुछ करना है 
पाना है बड़ा मुकाम 
तो छोड़ दो सब बेकार के काम 
मन में भर लो एक चिंगारी की 
आई है परीक्षा, 
कर लो अब तैयारी

आई है परीक्षा, 
कर लो अब तैयारी
खेल कूद छोड़ दो, 
और छोड़ दो दुनिया दारी....*2









Monday, August 19, 2019

कक्षा में पाठ्य पुस्तक या टेबलेट..( भाषण)

कक्षा में पाठ्य पुस्तक या टेबलेट

Pathypusatak ya tablet
नई पुस्तक 



मित्रों, आज मनुष्य ने विज्ञान और तकनीकी में बहुत विकास कर लिया है। अब तकनीकी के बिना रह पाना लगभग नामुमकिन सा हो गया है। इसने हमारे जीवन को बेहद सरल, आसान और सुविधाजनक बना दिया है। यह किसी से छुपा नहीं है कि शिक्षा के क्षेत्र में भी आज तकनीकी का बोलबाला है इसी तकनीकी ने ही हमें एक यंत्र दिया है जिस का नाम है टेबलेट.
आप सब भी इस गैजेट से जरूर वाकिफ़ होंगे.
पर क्या आप को लगता है कि यह छोटा सा यंत्र कक्षा में कभी पाठ्यपुस्तकों का स्थान ले सकता है... मेरा मानना है कि नहीं... यह पुस्तकों का स्थान कभी नहीं ले सकता... चलिए मान लेते हैं कि एक उंगली के इशारे से चंद मिनटों में हमें वो सभी जानकारियां प्राप्त हो जाती हैं जिनकी हमें आवश्यकता होती है...वही पुस्तक में थोड़ा अधिक समय लगता है.
.. परंतु साथियों महसूस कीजिए उस खुशबू को , जो एक नई पुस्तक से आती है.. आ हा हा.. क्या उस खुशबू को हम टेबलेट में महसूस कर सकते हैं? नहीं न....
खरीदने के बाद जब वह पुस्तक घर आती है तो किस प्रकार हम ही नहीं हमारे माता पिता भी उस पर आवरण चढ़ाने, उस पर नाम लिखने बैठ जाते हैं. जबकि टेबलेट के साथ ऐसा नहीं है....

   दोस्तों, टेक्नोलॉजी ने जहां चीज़े आसान की है वहीं परिवारों को एक दूसरे से अलग भी तो कर दिया है.... पास में बैठे हैं फिर भी हमारे पास एक दूसरे से बात करने का समय ही नहीं है...
कोई नहीं जानता कि अगले के जीवन में चल क्या रहा है.. इनसे निकलने वाली हानिकारक किरणों से स्वास्थ्य पर बुरा व नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है सो अलग. कहीं कोई गलत साइट खुल गई तो मानसिक स्वास्थ्य भी बुरी तरह प्रभावित होता है...
 वहीं पाठ्यपुस्तक के साथ ऐसी कोई सम्भावना या समस्या नहीं है. बल्कि पुस्तकें ही सही रूप में चरित्र निर्माण करने में सहायक होती हैं.... क्योंकि पाठ्यपुस्तकें कई विद्वानों और साहित्यकारों के गहन परिश्रम के बाद ही बाजार में उपलब्ध होती हैं.
इनमें उपस्थित पंचतंत्र की कहानियां, हितोपदेश आदि हमें नैतिकता का सही रूप से पाठ पढ़ाते हैं...

मित्रों, पुस्तकों से हमारी यादें भी जुड़ी होती हैं .जब कभी किसी कोने में पड़ी कोई पुरानी पुस्तक हाथ लग जाती है तो हमारी कई यादें भी ताज़ा हो जाती हैं।...
 इसमें न वाई-फाई का खर्च, न बिजली की खपत, और न ही किसी ऐप को इंस्टाल कराने की झंझट...
गलती से गिरकर कहीं टूट फुट जाएं तो हजारों रुपयों का नुकसान अलग...
इसलिए , मैं यह कह सकती हूं कि कक्षाओं में पाठ्य पुस्तकों का स्थान टेबलेट कभी नहीं ले सकता.
पुस्तकें ही हमारी सच्ची मित्र होती हैं जो हमें ज्ञान रुपी वह अनमोल मोती देती हैं जिन्हें पिरोकर हम अपने जीवन को सही आयाम दे पाते हैं।

Friday, May 10, 2019

Be yourself

Be yourself...

I know u r insecure of me.

feeling I'm better than thee.

I agree, that's true.

And nothing new.

Whenever we met.

U tried to put me down.

U smiled but inside I saw you frown.

You trying hard to prove yourself

But I am not,

As I've better things to do.

So I am not jealous of you.

I possess different attributes.

N u have different that suits.

Just remember this

Nothing happens so quick.

So take ur time.

Make juice out of your lime.

Running away from the problems will not fetch u anything

Instead.. will lead u to nothing

You can...

Yes U Can Conquer the world

Just be urself, let the life be furled

Twists and turns will come your way

While the sun shines, make the hay

Hmmm.. be urself n sore high

Have courage to face the consequences, never sigh.

Just be urself..



 Sudha A Singh

Wednesday, May 8, 2019

काश ऐसा हो जाता...


काश ऐसा हो जाता
होती अमूर्त कल्पना मूर्त।
वृक्षों की शाखों में
फूलों, पत्तियों
और फलों की जगह
लगा करते नल।
और झरता उसमें से
जीवनदायी जल।।
मिटती तृष्णा जीव जगत की....
अकालग्रासत फटती वसुंधरा की...
सभी जीवों जंतुओं की...
खग, मृग, नन्हें छौनों की...
फिर चहुँ ओर
न त्राहि त्राहि मचती।
न शुष्क मृदा
इतनी बदसूरत तस्वीर रचती।।
हर सजीव तृष्णा से तर जाता।
खुशियों से धरती का आँचल लहराता।
काश ऐसा हो जाता......

 सुधा सिंह ✍️

Saturday, May 4, 2019

प्रभु पंख मुझको देना..



प्रभु पंख मुझको देना
परवाज मुझको देना
मैं उड़ सकूँ गगन में
आशीष मुझको देना

चंदा के साथ खेलूँ
तारों से चाहूँ मिलना
छू लूंगा आसमान मैं
तुम साथ मेरा देना

जब जब गिरूंँ मैं तब तब
मेरा हौसला बढ़ाना.
डरकर मैं सहमूंँ जब भी
मुझको गले लगाना

भरो भक्तिभाव मन में
चरणों में स्थान देना
करूँ जब भी मैं चढ़ाई
तुम ही निसेनी बनना

प्रभु पंख मुझको देना
परवाज मुझको देना 

Wednesday, April 24, 2019

तन्हा पेड़... बाल कविता




जलती धूप में तन्हा पेड़, तटस्थ अड़ा खड़ा है पेड़ ।
जड़ा, पाला, शरद, शिशिर, की माया झेला करता पेड़।।

कभी मलय पवन, कभी लूह तपन, सदा सुख-दुख सहता रहता पेड़।
खग, विहग का बना आसरा, अपना फर्ज निभाता पेड़।।

पढ़िए एक प्रेरक कविता : एकता

घाम, बवंडर, झंझावात , सभी से लड़ता रहता पेड़।
भूख मिटाता राहगीर की, छाँव सभी को देता पेड़।।

जहर घुला है हवा में जोउसको अवशोषित करता पेड़।
डटा रहे सदा लक्ष्य पे अपने, वसुधा की शान बढ़ाता पेड़।।

जलती धूप में तन्हा पेड़,
तटस्थ अड़ा खड़ा है पेड़।

Wednesday, April 17, 2019

ईमानदारी के दस मिनट

ईमानदारी के दस मिनट


 शाम के पांच बज रहे थे।स्कूल छूटते ही पास के रिक्शा स्टैंड से ही घर जाने के लिए मैंने रिक्शा ले ली। रिक्शे का किराया देकर मैं घर की तरफ बढ़ी ही थी कि मैसेज चेक करने के उद्देश्य से मोबाइल फोन निकालने के लिए मैंने कुर्ते की साइड पॉकेट में हाथ डाला। पर मोबाइल वहाँ नहीं था। मैं घबरा गई। हड़बड़ाहट में मैंने अपने पर्स को अच्छी तरह से छान मारा पर मोबाइल कहीं नहीं था। मन में तुरंत कौंधा कि हो न हो मोबाइल रिक्शे में ही गिरा है। मुझे अच्छी तरह से याद था कि मैंने मोबाइल को कुर्ते की साइड पॉकेट में ही रखा था।स्कूल से निकलते वक़्त करेक्शन के उद्देश्य से मैंने दो बड़े - बड़े थैलों में बच्चों के नोटबुक्‍स भरकर दोनों कंधों पर लटका लिए थे। बुक्स के कारण थैले काफी वजनी हो गए थे। इसी कारण मोबाइल का वजन न के बराबर हो गया था और मेरी जेब से वह कब और कैसे गिर गया उसका एहसास ही नहीं हुआ।
घबराहट में भागी- भागी मैं घर के सामने वाले रिक्शा स्टैंड पर पहुँची।आसपास नजर दौड़ाई तो रिक्शा वाला वहाँ कहीं नजर नहीं आ रहा था। मन में अनेक बुरे - बुरे ख्याल आ रहे थे. एक रिक्शे वाले से मैंने पूछा, "वो... वो रिक्शे वाला कहाँ गया?? उसमें मेरा फोन छूट गया है!!
मेरी आवाज सुनते ही वहाँ मौजूद सभी लोगों और रिक्शा वालों की निगाहें मेरी तरफ मुड़ गई। फिर भीड़ में से ही किसी रिक्शेवाले ने बताया कि वह तो कब का वहाँ से चला गया। डर के मारे मेरे पसीने छूट रहे थे। एक तो चैत की तपती गर्मी ऊपर से फोन न मिल पाने की निराशा। मेरी अकुलाहट बढ़ती जा रही थी। तभी दूसरे रिक्शे वाले ने मेरी तकलीफ को समझते हुए मदद करने के इरादे से अपना फ़ोन मेरी तरफ बढ़ा दिया। हड़बड़ी में मुझे अपना नंबर याद ही नहीं आ रहा था। फिर अपने आप को संयत करके मैंने दोबारा अपना नंबर लगाया। फोन की घंटी बज रही थी पर सामने से कोई रिस्पॉन्स नहीं मिल रहा था। मैंने दोबारा नंबर लगाया। परंतु रिक्शा वाले ने अपनी रिक्शा में पैसेंजर बिठा लिए थे तो उसे भी वहाँ से जाने की जल्दी थी। उसके फोन मेरे पास था इसलिए वह असमंजस में था कि अब क्या करे एक तरफ इंसानियत की माँग व दूसरी ओर पेट की रोटी। मैंने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं की।उसका फोन उसे लौटा दिया। सोचा कि किसी दूसरे से माँग लूँगी। फोन को कान से लगाए हुए वह रिक्शे में बैठा ही था कि फोन में दूसरी तरफ से आवाज आई - " हैलो..हैलो..!"
"हैलो.. हाँ एक मिनट.. एक मिनट.." फोन पर हैलो.. हैलो.. करते हुए उसने मुझे अपना फोन पकड़ा दिया।भीतर ही भीतर मैंने राहत की एक साँस ली अब मन में फोन वापस पाने की एक उम्मीद जगी थी।
रिक्शेवाला बहुत दूर निकल चुका था किस्मत अच्छी थी कि उसने कोई सवारी नहीं बिठाई थी वरना फोन मिलना तकरीबन नामुमकिन हो जाता। मैंने बातचीत करके उसे उसी रिक्शा स्टैंड पर बुलवाया। इंतजार के वह पाँच मिनट... लगा सदियों के समान गुजरा. मन में नकारात्मक विचारों ने घेरा डाल दिया था। " कहीं रिक्शे वाले के मन में कोई पाप न आ जाए" कहीं उसने अपना मन बदल लिया तो.. मेरा कितना नुकसान हो जाएगा.... और भी न जाने कितनी ऊलजलूल बातें मुझे टोच रही थीं। "
अचानक मेरे सामने वह रिक्शाआकर रुकी उसने मेरे हाथ में मेरा फोन पकड़ाया और जाने को तत्पर हुआ तो मैंने उसे रोक लिया और मैंने ईनाम के तौर पर कुछ रुपए देने चाहे परंतु उसने साफ़ साफ इनकार कर दिया।कि वह इन रुपयों को नहीं लेगा। फिर मैंने उससे आग्रह किया - " भैया... आप इतनी दूर से लौट कर आये मेरा फोन लौटाने के लिए तो कम से कम अपना किराया तो ले लीजिए। " बिना कुछ कहे अपना किराया लेकर उसने बाकी पैसे मुझे वापस लौटा दिए। मैं अच्छी तरह से उसे धन्यवाद भी नहीं कर पाई थी कि वह रिक्शा स्टार्ट करके वह वहाँ से तुरंत निकल गया शायद उसे कहीं जाने की जल्दी थी। मैंने स्टैंड के बाकी रिक्शा चालकों को भी धन्‍यवाद दिया और वहां से चली आई।

रिक्शेवाला चाहता तो उस फोन को रख लेता और मैं कुछ न कर पाती। न तो मैं उसका चेहरा पहचानती थी और न ही मैं उसके रिक्शे का नंबर जानती थी। पुलिस में शिकायत दर्ज कराने जाती तो अधूरी जानकारी से पुलिस भी कुछ न कर पाती। ये तो उस रिक्शेवाले की नेक नीयत थी कि उसने मेरा फोन लौटा दिया और इनाम के रुपए भी नहीं लिए। कई लोगों के सामने आज वह एक मिसाल बनकर प्रस्तुत हुआ था।

 आज के समय में जहाँ भाई - भाई पर भरोसा नहीं करता। झूठ, बेईमानी, चोरी मक्कारी जहाँ सिर उठाए घूमती है ऐसे परिवेश में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भारतीय जीवन मूल्यों को आज भी सर्वोपरि रखते हैं। शायद इसी लिए कहते हैं कि इंसानियत अभी पूरी तरह से मरी नहीं है।


Saturday, April 6, 2019

जीवनधारा



जीवन की धारा में पल पल, सभी को बहते जाना है
जिस दिश हमें बहाए वो, हमें उसी दिशा में जाना है

अजस्र वह और अमर भी वह, सुख - दुख का ताना- बाना है
जब उलझे ये ताने - बाने उन्हें संयत हो सुलझाना है

ये ज्वार भाटा का संगम है ऊपर और नीचे जाना है
आंधी, झक्कड़, तूफानों से हमें निडर होके टकराना है

पढ़ें एक प्रेरक कविता : पथिक अहो..

मुश्किल और परेशानी बन घटाटोप घिर आते हैं
कभी हार है तो कभी जीत है, यही जीवन का पैमाना है

सुख के दिन रहते नहीं अगर, दुख के दिन को भी जाना है
जीवन की धारा में पल - पल,हम सभी को बहते जाना है

Sunday, February 10, 2019

हे मातु शारदे... (गेय वंदना)


हे मातु शारदे....

तव चरणन में वंदन मेरा
हे मातु शारदे वर दे.. वर दे..

हे श्वेतांबरा, हे पद्मासिनी ,
उर-अन्तर मेरा प्रीत से भर दे..

हे वागीश्वरी, हे वीणा वादिनी
जिव्हा को मधुरिम स्वर दे..

हे मृगनयनी, पावन करणी
सद्गुण शाली इह जग कर दे..

हे हंसारूढ़ी, हे बुद्धिदायिनी,
ज्ञानचक्षु प्रकाशित कर दे...

हे धवलवर्णा, हे चंद्रवदिनी
कर तिमिर दूर,अभय वर दे...

हे विशालाक्षी, हे शतरूपा
दे आशीष, मेरा जीवन तर दे...

सुधा सिंह 📝

इसे भी पढ़ें :ललकार रहा है हिंदुस्तान...

Tuesday, February 5, 2019

उदा देवी पासी

( उदा देवी पासी :एक ऐसी वीरांगना जिसने अंग्रेजों के सामने जिसने कभी घुटने नहीं टेके।परंतु इतिहास के पन्नों में कहीं खो गई।  )


सुनो सुनो जी एक कहानी
उदा देवी पासी की
थी सेना की चीफ़ कमांडर
हजरत महल की सेना की

धूल चटा दी अंग्रेजों को
ऐसी वह मरदानी थी
हार नहीं मानेगी बिलकुल
मन में उसने ठानी थी

आजादी का बिगुल बजा जब
लहू उनका भी उबल उठा तब
अंग्रेजों ने करी चढ़ाई
सेना लखनऊ तक बढ़ आई

दाँव पे लगा मान सम्मान
युद्ध छिड़ गया घमासान

चली गोलियां दोनों तरफा
बंदूकें भी बोल रहीं थी
उदा की हिम्मत के आगे 
गोरी सेना खेत रही थी

सिर पर कफन बाँध कर निकली
वो ऐसी बलिदानी  थी
जब तक सांसों में स्पन्दन था
हार न उसने मानी थी

सुनो सुनाऊँ उनकी कहानी
वह तो उदा पासी थी
थी सेना की चीफ़ कमांडर
हजरत महल की सेना की.

Monday, February 4, 2019

उद्यम ही प्रगति की जननी है...

उद्यम ही प्रगति की जननी है... (निबंध)



एक पुरानी कहावत हैं परिश्रम ही सफलता की कुंजी है अर्थात् परिश्रम करने वाला व्यक्ति कभी असफलता का मुँह नहीं देखता ।वह अपने जीवन में एक न एक दिन कामयाबी के सर्वोच्च शिखर पर पहुचता है। हर व्यक्ति की कुछ इच्छाएं आवश्यकता होती है। वह सुख शांति की कामना करता है। दुनिया में नाम कमाने की इच्छा रखता है, किंतु केवल कल्पना करने से ही कार्य सिद्ध नहीं हो जाते ।
अपनी कल्पना को एक मूर्त रूप देकर, उसपर अमल करने से ही वह कल्पना साकार रूप लेती है और व्यक्ति मनचाहे लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। शेर को जंगल का राजा माना जाता है। परंतु यदि वह सोता रहे तो उसके मुख में पशु स्वयं ही प्रवेश नहीं करता उसे भी अपनी भुभुक्षा शांत करने के लिए परिश्रम करना पड़ता है। उसी प्रकार केवल मन की इच्छा से काम सिद्ध नहीं होते उनके लिए परिश्रम करना पड़ता है।कठिन परिश्रम ही भाग्य को जगाता है । किया गया परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता । एक न एक दिन वह अपना रंग अवश्य दिखाता है।

विश्व के जितने भी प्रख्यात व्यक्ति हुए हैं सभी ने अपने अपने क्षेत्र में परिश्रम किया तभी दुनिया में अपना नाम ऊँचा कर सके हैं । मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर का नाम दुनिया का बच्चा बच्चा जानता है । उद्योग जगत की बात करें तो जमशेदजी टाटा और धीरूभाई अंबानी के उद्यम का लोहा पूरी दुनिया मानती है। जमशेदजी टाटा को तो भारतीय उद्योग का जनक माना जाता है। फिल्म जगत के मशहूर सितारे शाहरूख खान का नाम दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में गिना जाता है। इन लोगों ने दिन रात परिश्रम करके ही अपने लक्ष्य को प्राप्त किया है। शाहरुख खान ने टीवी के एक साक्षात्कार के दौरान बताया था कि खाना खाने के लिए दाल में अतिरिक्त पानी डाला जाता था जिससे घर के सभी सदस्यों का पेट भर सके। वे एक निम्न मध्यमवर्गी परिवार में जन्मे थे । यह उनकी दृढ़ इच्छा और परिश्रम ही था जिसने उन्हें ऊँचाइयों के शिखर पर पहुँचाया । निरंतर अभ्यास और मेहनत के बल पर ही स्वर कोकिला कही जाने लता मंगेशकर की मीठी आवाज़ ने पूरे विश्व को अपना कायल कर दिया है। हिंदी के महान कवि और साहित्यकार सोहनलाल द्विवेदी जी ने ठीक ही लिखा है-

"मेहनत उसकी कभी बेकार नहीं होती ।
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।"
यदि मनुष्य का निश्चय दृढ़ है और उसने ठान लिया है कि वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करके ही छोड़ेगा तो वह कभी असफल नहीं होता ।इसी दृढ़ निश्चय और परिश्रम के बल पर ही आज मनुष्य ने चाँद पर अपना झंडा  गाड़ दिया है परंतु सफलता कभी किसी को आसानी से प्राप्त नहीं होती । सफलता की राह में कई बाधाएँ और मुश्किलें आती हैं और उन बाधाओं से लड़ना भी आसान नहीं होता इसलिए मनुष्य को धैर्य से काम लेना चाहिए । अधीरता मनुष्य को असफलता की ओर खींचती है।अतः जो मनुष्य धैर्यपूर्वक निरंतर परिश्रम करता है । सफलता उसके कदम जरूर चूमती है।

अकर्मण्य व्यक्त ही केवल भाग्य के सहारे सब कुछ प्राप्त करना चाहता है। बहुत ही कम भाग्यशाली व्यक्ति हैं जिन्हें अपने पूर्वजों की संपत्ति प्राप्त होती है परंतु यदि अपने पूर्वजों से प्राप्त की हुई इस संपत्ति का वे सही उपयोग नहीं करते व बिना कुछ किए हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं तो उस अर्जित संपत्ति को भी क्षण में गँवा देते हैं। कहते हैं कि कोई भी राष्ट्र तभी विकास कर सकता है जब उस राष्ट्र के नागरिक उद्यमी हों। मानचित्र पर जापान एक छोटा सा देश है परंतु उसका लोहा पूरा विश्व मानता है।

यह कहना गलत न होगा कि परिश्रम का महत्व परिश्रम करने वाले से अधिक कोई नहीं जानता। अतः जो मनुष्य सकारात्मक होकर अपने निर्धारित लक्ष्य को साधने में निरंतर प्रयासरत रहता है सफलता स्वयं उसके कदमों में आकर बिछ जाती है । परिश्रम के सहारे मनुष्य किसी भी प्रकार की कठिनाई को मार्ग से दूर हटा देता है। वहीं एक आलसी और अकर्मण्य मनुष्य कभी अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि परिश्रम ही जीवन की सफलता का रहस्य है। कठिन परिश्रम ही बेहतर जीवन का निर्माण करता है।

सुधा सिंह 

अर्जुन... आज की कक्षा में

अर्जुन.. आज की कक्षा में



(प्रिय बच्चों ,
नाम से तो आप समझ ही गए होंगे कि मैं महाभारत के एक प्रमुख पात्र अर्जुन की बात कर रही हूं जो यदि आज की कक्षा में पहुंच जाएँ तो वे कैसा महसूस करेंगे। इसी विषय पर आधारित है यह काल्पनिक प्रसंग।)


अर्जुन, पांच पांडवों में से एक, द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य, सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी ,स्वर्ग लोक में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरु द्रोणाचार्य को कुछ अच्छी भेंट देने के उद्देश्य से एक सुंदर प्रतिमा बना रहे थे। तभी आगमन होता है देवर्षि नारद का, जो हमेशा मुस्कुराते हुए आते और तीनों लोकों की खबरें सुनाते। पर यह क्या, आज उनके चेहरे पर वह खिलखिलाती मुस्कान नहीं थी और चेहरा भी मुरझाया मुरझाया- सा था।

अर्जुन ने देखते ही उन्हें प्रणाम किया और पूछा, "क्या बात है मुनिवर, आज आप खुश नहीं दिख रहे हैं?"

 नारद मुनि बोले , "नारायण, नारायण। अर्जुन, अपने गुरु के प्रति तुम्हारी यह श्रद्धा देखकर जहां मेरा मन प्रसन्न हो जाता है, व पृ थ्वी वासियों का अपने शिक्षक के प्रति रवैया देख कर मन द्रवित हो जाता है।"

"एक तरफ तुम यहां गुरु द्रोणाचार्य को उपहार देने के लिए उनकी प्रतिमा बना रहे हो, वही दूसरी ओर धरती के नव युगीन छात्र अपने शिक्षकों का उपहास उड़ाने के लिए उनके हास्य चित्र बनाते हैं।उन्हें न जाने कैसे - कैसे नामों से चिढाते हैं। पीठ पीछे उनका तिरस्कार करने से भी नहीं चूकते। यह सब देखकर मेरा मन व्यथित हो जाता है। और तो और अपने अभिभावकों से भी अक्सर वे ऊँचे स्वर में ही बात करते हैं। अपने माता - पिता के प्रति भी उनके मन में कोई श्रद्धा भाव परिलक्षित नहीं होता। "

अर्जुन हक्का- बक्का होकर उनकी सारी बातें सुन रहे थे। उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

अर्जुन उनसे असहमति जताते हुए कहते हैं," देवर्षि विश्वास नहीं होता। कोई भी बालक अपने गुुरुजनों व माता- पिता के साथ इस प्रकार का दुर्व्यवहार कदापि नहीं कर सकता। कदाचित समझने में आपसे कोई त्रुटि हो रही है।

इस प्रकार दोनों में एक लंबी बहस हुई। परंतु अर्जुन उनकी बातों से सहमत न हो सके। तब नारद जी ने अर्जुन के समक्ष एक शर्त रखी कि वह धरती लोक पर जाकर कक्षा में एक दिन बिताए।अर्जुन ने शर्त स्वीकार कर ली।

और शर्त अनुसार अगले दिन अर्जुन इंद्रप्रस्थ अर्थात आज की नई दिल्ली के एक विद्यालय में एक छात्र का रूप लेकर जा पहुंचे। उन्हें वहां का वातावरण एकदम ही अलग - सा लगा। सब कुछ बदला-बदला सा। उन्हें सब कुछ विचित्र - सा प्रतीत हो रहा था। फिर भी वे आगे बढ़े और एक छात्र से उन्होंने प्रश्न किया, "क्या तुम कक्षा में पहुंचने में मेरी सहायता कर सकते हो?" वह छात्र अर्जुन की भाषा सुनते ही हंसने लगा। और अपने बाकी मित्रों को बता बता कर अर्जुन का मजाक उड़ाने लगा।

अर्जुन सोच में पड़ गए कि उस बालक के हंसने का कारण क्या था!फिर कुछ विचारकर उन्होंने निश्चित किया कि क्यों न किसी बड़े व्यक्ति से ही कक्षा का मार्ग पूछ लिया जाए ! उनकी निगाह विद्यालय के पहरेदार पर पड़ी, जिसने उन्हें उनकी कक्षा का मार्ग बताया ।

अर्जुन यह सुनकर हैरान रह गए कि उनकी कक्षा एक बड़ी इमारत का एक बंद कमरा है न कि उनके गुरुकुल की भांति खुले वातावरण में किसी पेड़ की छांव तले।

जैसे - तैसे मार्ग ढूंढते हुए, वे एक कक्षा में पहुंचे। हिन्दी भाषा में बच्चों से बात करने की कोशिश करने लगे । तभी बातों-बातों में एक छात्र ने बताया कि विद्यालय में हिंदी भाषा में वार्तालाप करना मना है।

यह जानकर उन्हें आश्चर्य हुआ कि अपने देश में हिंदी भाषा को महत्व नहीं दिया जा रहा है और तो और संस्कृत जैसी देव भाषा का एक शब्द भी अधिकतर लोग नहीं जानते। वे यह सब सोच ही रहे थे कि कक्षा में गुरु जी का आगमन हुआ। उन्होंने उन्हें साष्टांग दंडवत किया। जिसे देखकर सारे छात्रा जोर-जोर से हंसने लगे और अर्जुन का उपहास उड़ाने लगे। गुरूजी ने सबको डांट कर बिठाया और अर्जुन को अपना स्थान ग्रहण करने को कहा। उसके उपरांत उन्होंने सभी बच्चों से गृह कार्य के बारे में पूछा। जिन बच्चों ने गृह कार्य नहीं किया था, उन्हें दंड दिया। परंतु उनमें से एक छात्र उनसे वाद-विवाद करने लगा। यह सब देखकर अर्जुन के आश्चर्य की सीमा न रही कि कोई छात्र अपने गुरु से इस भांति उद्दंडतापूर्वक व्यवहार कैसे कर सकता है! इस प्रकार प्रतिपल उनका आश्चर्य बढ़ता ही जा रहा था। उन्होंने देखा कि शिक्षक पूरा समय खड़े रहें। उनके लिए कक्षा में न कोई कुर्सी थी ना ही बैठने के लिए कोई स्थान बनाया गया था। इस भाँति पूरा दिन बीत गया। उन्होंने बहुत कुछ अनुभव किया, जो उन्हें बहुत खटक रहा था।

विद्यालय का समय समाप्त होते ही सभी बच्चे अपना बस्ता लेकर अपने माता - पिता के साथ घर रवाना हो गए , कई बच्चे वाहनों में बैठकर अपने घर चले गए। उसी समय नारद मुनि भी उन्हें लेने आ पहुँचे ।

 स्वर्ग की ओर प्रस्थान करते हुए नारद जी ने जब उनसे उनका अनुभव पूछा तो उन्होंने कहा," मुनिवर! आपसे क्या कहूं, आज जो कुछ भी मैंने अनुभव किया है उसके बारे में मैंने कभी सोचा भी न था। आप ठीक कह रहे थे। आज कोई छात्र अपने शिक्षक का अभिवादन करना जरूरी समझता है और ना ही सम्मान करता है।"

नारद मुनि ने कहा, "हां अर्जुन! तुम सही कह रहे हो! इस देश की शिक्षा व्यवस्था में बहुत सी कमियां है साथ ही साथ ऐसी न जाने कितनी समस्याएं हैं जो देश की संस्कृति के लिए कलंक बनती जा रही है!"

तुम्हारे अनुसार क्या किया जाना चाहिए? "

अर्जुन ने प्रत्युत्तर में कहा," मुनिश्रेष्ठ! गीता ज्ञान।"

" गीता ज्ञान!", नारद जी ने चकित होकर कहा।

अर्जुन ने अपना पक्ष रखते हुए कहा, "जी मुनिवर! सर्वप्रथम सभी विद्यालयों में गीता का ज्ञान अनिवार्य कर देना चाहिए। एकमात्र गीता ज्ञान से ही व्यवहार संबंधी सभी समस्याएं अपने आप सुलझ सकती हैं।"

" शायद तुम ठीक कह रहे हो।"

" परंतु एक बात मुझे इस विद्यालय में बहुत अच्छी लगी ।"

"कौन सी बात अर्जुन? ", आश्चर्य जताते हुए नारद मुनि ने पूछा।

अर्जुन ने कहा, "वह यह कि छात्र कई नई भाषाएँ सीख रहे हैं जिससे उनका ज्ञान बढ़ रहा है । परंतु इसका एक खराब पहलू यह है कि वे अपनी हिंदी भाषा को भुलाते जा रहे हैं, जिससे धीरे - धीरे भारत वर्ष की संस्कृति भी कमजोर होती जा रही है।"

" तुम ठीक कहते हो, अर्जुन! पर इसका कोई तो उपाय होगा", नारद मुनि ने हामी भरते हुए पूछा ।

अर्जुन बोले," उपाय तो है मुनिवर।पर यह सरल कदापि नहीं है। "

" तुम कहो तो। "

यदि हमें अपनी संस्कृति को बचाना है तो सबसे पहले हिंदी भाषा को अंग्रेजी भाषा जितना गौरव प्रदान करना जरूरी है। अन्यथा एक दिन ऐसा आएगा कि भारत की संस्कृति पूरी तरह से नष्ट हो जाएगी और फिर कोई कुछ नहीं कर पाएगा! "

" पर यह सब तो भारत वासी ही कर सकते हैं। हम और तुम कुछ नहीं कर सकते। आखिर उन्हें ही तो अपना भविष्य तय करना है।"

" लो स्वर्ग भी आ गया। अब तुम जाओ और चित्र पूरा करो ताकि गुरु द्रोणाचार्य को अपनी भेंट प्रदान कर सको। "

अर्जुन ने हाथ जोड़कर उन्हें नमन किया और नारद मुनि "नारायण, नारायण" कहते हुए वहां से प्रस्थान कर गए।


सुधा सिंह 📝

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