बचपन |
कहो, किस नाम से तुम्हें पुकारूँ!
बेफिक्री, निश्छलता, निश्चिंतता,
किस शब्द से उच्चारूँ!
तुमसे जुड़े हर नाम से सुखद पय ही तो
रिसता पाया!
धूप हो, बारिश हो, सर्दी हो या गर्मी
तुमने जीवन को सदा उमंगों से सजाया!
कभी बाहर, कभी भीतर!
बस धमा-चौकड़ी दिन भर!
कीचड़ से लथपथ और पसीने में तर!
धूप से न होता, कभी करियाने का डर!
कागज की नावें, चलाने की होड़!
तितली की पूँछ में बांध दी, पतली से डोर!
घर में मचा हल्ला, मैं सिपाही तू चोर!
चल आज चढ़ते हैं पेड़, और तोड़ते हैं बोर!
न भोजन की फिक्र न पढ़ाई की बातें!
निश्चिंत दिन और निश्चिंत रातें!
राजा के किस्से, गुड़िया की शादी!
पापा की डांट से बचाती थी दादी!
मेजोरिटी विंस और डाईन तेरी!
नहीं, नहीं डाईन तेरी, न कि डाईन मेरी!
पल वो सुनहरे और सुनहरी वो यादें!
रहते तुम दिल में , तुम्हें कैसे भुला दें!
इस मुरझाई बगिया के, पुष्प फिर खिला दें
लौट आ, ओ बचपन! तुम्हें तुमसे मिला दें
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (१३ -१०-२०१९ ) को " गहरे में उतरो तो ही मिलते हैं मोती " (चर्चा अंक- ३४८७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteआपने तो बचपन की याद दिला दी।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय 🙏
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