Friday, July 27, 2018

मेरा खिलौना.. ( बाल कविता)

मेरा खिलौना मेरी कार
( कक्षा 2,3 के विद्यार्थियों के लिए)

मुझको प्यारी मेरी कार, सबसे न्यारी मेरी कार
मेरे पिछले जन्मदिवस पर, मेरी मम्मी लाई कार

इतना सुंदर रंग है इसका, सबको भाई मेरी कार
तेज गति है.. सर्र से दौड़े.. , सबको हराए मेरी कार

काले - काले टायर इसके, चम- चम बिजली जैसे चमके
देख के सबका मन ललचाए, ऐसी अनोखी मेरी कार

बंटी चुन्नू देखके जलते, रूठ - रूठ के रोया करते
अपनी मम्मी से जिद करते, ला दो कविश के जैसी कार

पिस्टन कप का बना विजेता, ग्रैंड प्री भी इसने जीता
कहो बताऊँ उसका नाम , जो है मेरी प्यारी कार.

अरे.. उसके आगे सब बेकार , वो है मेरी मैक्वीन कार.
मुझको प्यारी मेरी कार, सबसे न्यारी मेरी कार


©®सुधा सिंह 📝


Tuesday, July 24, 2018

सच्ची मित्रता...


अरे मित्र  तुमने तो सिद्ध कर दिया कि तुम ही मेरे सच्चे मित्र हो... इस पंक्ति से शुरू करते हुए एक मौलिक कहानी लिखें ( icse board 2017 - 2018)


अरे मित्र  तुमने तो सिद्ध कर दिया कि तुम ही मेरे सच्चे मित्र हो. तुम न होते तो आज मेरा पूरा परिवार रास्ते पर आ गया होता. बेरोजगारी और गरीबी इन्सान से क्या नहीं करवाती. मैंने भी बेरोजगारी को बहुत नजदीक से देखा है. परंतु तुम्हारे कारण मैं बहुत बड़ी मुसीबत से बाहर निकल सका.
  बात दो महीने पहले की ही है है. मैं बारहवीं में पढ़ रहा था और मेरी बहन शिक्षा कक्षा आठवीं थी.
पिताजी जिस कम्पनी में काम करते थे किसी वजह से उस कम्पनी का दिवाला निकल गया और पिताजी की नौकरी छूट गई. जैसे तैसे हमारे दिन गुजर रहे थे. घर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि हम सबके फांके पड़ने लगे थे. रिश्तेदारों और जान- पहचान वालों ने कुछ दिन हमारी मदद की परंतु वे भी कितना साथ देते. एक- एक करके सभी लोगों ने हमसे मुंह फेर लिया था. मैंने सोचा कि मैं भी कोई छोटी - मोटी नौकरी कर लेता हूं.नौकरी पाने के लिए भी मैंने बहुत हाथ पैर मारे. न जाने कितने दफ्तरों के चक्कर लगाए. पर एक 11 वीं पास को नौकरी पर कौन रखता.

मेरे मित्र रवि ने  कई मुझे अपनी दुकान में नौकरी देने की पेशकश की परंतु  एक ज्वेलर्स की दुकान में मामूली सेल्समैन की नौकरी मुझे गवारा ना थी. "आखिर मेरे दोस्त मेरे बारे में क्या सोचेंगे. मेरे ख्वाब बहुत बड़े थे. मैं एक बड़ा आदमी बनाना चाहता हूं. इस मामूली नौकरी से अपने सपने पूरे नहीं कर पाऊंगा." यही सब सोचकर मैंने सामने से चलकर आई उस नौकरी को भी ठुकरा दिया.
उसने मुझे कई बार समझाया कि पढ़ाई के साथ-साथ पार्ट टाइम नौकरी कर लूँ, जिससे घर का गुजारा तो चल ही जाएगा .मेरे पिताजी ने भी बड़े मामूली वेतन में पूरी जिंदगी गुजार दी. उनके वेतन से मात्र घर की मुख्य जरूरतें ही पूरी हो पाती थी. इसलिए मैं भी चाहता था कि मैं कोई ऐसी नौकरी करु, जिसमें मुझे अच्छे खासे पैसे मिले.
  एक दिन मैं पार्क में बैठा हुआ चने चबा रहा था और इसी उधेड़बुन में में लगा था कि मुझे कोई अच्छी नौकरी मिल जाए. तभी मेरी नजर उस कागज पर पड़ी जिसमें चने थे जो मैंने चने वाले से खरीदी थी. वह पुड़िया  मानो आज मेरे लिए वरदान बनकर आई थी ऐसा लगा कि भगवान ने मेरी सुन ली. मेरी सारी परेशानियां अब दूर हो जाएंगी. मैं दौड़ा-दौड़ा अपने घर  पहुंचा,. मैं बहुत खुश था जैसे मेरी लॉटरी लग गई हो . कागज में छपे विज्ञापन को पढ़कर मैंने अपनी मां और पिताजी को सुनाया जिसमें लिखा था कि  अरब देशों मैं अच्छी नौकरियां उपलब्ध है. 10वीं और 12वीं पास  लड़के चाहिए . कुल खर्चा मात्र 80 हजार. विज्ञापन सुनकर मां और पिताजी के चेहरे पर निराशा छा गई. "कैसे होगा आखिर 80 हजार का इंतजाम." तभी मेरी बहन शिक्षा ने सुझाव दिया कि माँ के गहने गिरवी रखकर पैसों का इन्तजाम हो जाएगा और जैसे ही मेरा वेतन आएगा, थोड़ा - थोड़ा पैसा देकर उसे छुड़ा लेंगे. माँ थोड़ा हिचकिचाई, पर कुछ सोचकर गहने गिरवी रखने के लिए राजी हो गई.
मैं झट से उन गहनों को लेकर अपने मित्र की दुकान पर गया और उसके बदले में उससे अस्सी हजार रुपयों की मांग की. साथ ही साथ खुशी- खुशी दुबई वाली नौकरी की बात भी बताई. उसने मुझसे कहा कि यह सब लोग पैसे लेकर  धोखा देते है, जालसाजी करते हैं. बड़ी और अच्छी नौकरी का झांसा देकर बंधुआ मजदूरी करवाते हैं. बाद में लोगों का इनके चंगुल से निकल पाना मुश्किल हो जाता है. उसने मुझे काफी समझाया.  पर मेरे सिर पर तो जैसे दुबई का भूत सवार था. मुझे बार- बार यही लग रहा था कि रवि चाहता है कि मैं उसकी दुकान में उसकी नौकरी करूँ . उसकी गुलामी करूँ. इसलिए मैंने उसकी बात नहीं मानी और उससे पैसे मांगने लगा. परंतु अभी पैसे नहीं है यह बात कहकर उसने दो - तीन दिन का समय मुझसे मांगा. और कहा कि तब तक मैं बाकी की तैयारियाँ कर लूँ. मैं मान गया और अगले दिन सबसे पहले उस कंपनी के दफ्तर गया जिससे सारी जानकारी इकट्ठा करके सभी जरूरी कागजात जमा कर सकूँ. उन्होंने एक हफ्ते का समय देकर मुझे जल्द से जल्द पैसे जमा कराने के लिए कहा. मैं अपनी तैयारियों में जुट गया. घर में सभी लोग खुश थे. आशा लगाए बैठे थेअपने अच्छे दिनों की. पर  अगले ही दिन उस खबर ने मुझे चौंका दिया. हम सब टीवी में समाचार देख रहे थे .  खबर आ रही थी कि विदेश में नौकरी देने के नाम पर उन लोगों ने बहुत से लोगों को ठगा और लाखों रुपए लेकर फरार हो गए. पुलिस उनकी तलाश कर रही है. यह खबर सुनकर जैसे हमारे पैरों तले से जमीन खिसक गई हो. हमने ईश्वर को धन्यवाद किया कि हमारे पैसे बच गए पर दुख इस बात का भी था कि कई लोग उनकी जालसाजी का शिकार हो चुके थे.
मैं भागा - भागा अपने मित्र के पास गया और पूरी बात उसको बताई और उसे धन्यवाद किया. .

©®सुधा सिंह 📝
 
 

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