जलती धूप में तन्हा पेड़, तटस्थ अड़ा खड़ा है पेड़ ।
जड़ा, पाला, शरद, शिशिर, की माया झेला करता पेड़।।
कभी मलय पवन, कभी लूह तपन, सदा सुख-दुख सहता रहता पेड़।
खग, विहग का बना आसरा, अपना फर्ज निभाता पेड़।।
पढ़िए एक प्रेरक कविता : एकता
घाम, बवंडर, झंझावात , सभी से लड़ता रहता पेड़।
भूख मिटाता राहगीर की, छाँव सभी को देता पेड़।।
जहर घुला है हवा में जोउसको अवशोषित करता पेड़।
डटा रहे सदा लक्ष्य पे अपने, वसुधा की शान बढ़ाता पेड़।।
जलती धूप में तन्हा पेड़,
तटस्थ अड़ा खड़ा है पेड़।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 25/04/2019 की बुलेटिन, " पप्पू इन संस्कृत क्लास - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने के लिए शुक्रिया शिवम जी. 🙏 🙏 सादर
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