प्रभु पंख मुझको देना
परवाज मुझको देना
मैं उड़ सकूँ गगन में
आशीष मुझको देना
चंदा के साथ खेलूँ
तारों से चाहूँ मिलना
छू लूंगा आसमान मैं
तुम साथ मेरा देना
जब जब गिरूंँ मैं तब तब
मेरा हौसला बढ़ाना.
डरकर मैं सहमूंँ जब भी
मुझको गले लगाना
भरो भक्तिभाव मन में
चरणों में स्थान देना
करूँ जब भी मैं चढ़ाई
तुम ही निसेनी बनना
प्रभु पंख मुझको देना
परवाज मुझको देना
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मीनाजी 🙏 🙏 🙏
Deleteवाह अनुपम
ReplyDeleteहृदय तल से आभार आदरणीया
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया ओंकार जी 🙏
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया शिवम जी
ReplyDeleteसुन्दर कृति।
ReplyDeleteहृदय तल से आभार आदरणीय अंजान जी 🙏 🙏
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