Wednesday, May 8, 2019

काश ऐसा हो जाता...


काश ऐसा हो जाता
होती अमूर्त कल्पना मूर्त।
वृक्षों की शाखों में
फूलों, पत्तियों
और फलों की जगह
लगा करते नल।
और झरता उसमें से
जीवनदायी जल।।
मिटती तृष्णा जीव जगत की....
अकालग्रासत फटती वसुंधरा की...
सभी जीवों जंतुओं की...
खग, मृग, नन्हें छौनों की...
फिर चहुँ ओर
न त्राहि त्राहि मचती।
न शुष्क मृदा
इतनी बदसूरत तस्वीर रचती।।
हर सजीव तृष्णा से तर जाता।
खुशियों से धरती का आँचल लहराता।
काश ऐसा हो जाता......

 सुधा सिंह ✍️

15 comments:

  1. बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
  2. शुक्रिया अभिलाषा जी 🙏 🙏

    ReplyDelete
  3. बेहतरीन रचना 👌👌👌

    ReplyDelete
  4. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 08/05/2019 की बुलेटिन, " पैरंट्स टीचर मीटिंग - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया शिवम जी 🙏 🙏

      Delete
  5. बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया सखी कामिनी 🙏 🙏

      Delete
  6. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14 -07-2019) को "ज़ालिमों से पुकार मत करना" (चर्चा अंक- 3396) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

    ReplyDelete
  7. Replies
    1. शुक्रिया ओंकार जी 🙏 🙏 🙏

      Delete
  8. बहुत बहुत सार्थक सृजन भावों का उत्कृष्ट प्रदर्शन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया दी 🙏 🙏

      Delete

पाठक की टिप्पणियाँ किसी भी रचनाकार के लिए पोषक तत्व के समान होती हैं .अतः आपसे अनुरोध है कि अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों से मुझे वंचित न रखें।

रचनाएँ जो सबसे ज्यादा सराही गईं