Saturday, August 29, 2020

गणपति स्तुति (दोहे)



1:

यही मनोरथ देव है, रखिए हम पर हाथ। 

सुखकर्ता सुख दीजिए , तुम्हें नवाऊँ माथ।।

 2:

प्रथम पूज्य गणराज जी,  पूर्ण कीजिए काज।

सकल मनोरथ सुफल हों, विघ्न न आए आज।।

 3:

वक्रतुण्ड हे गजवदन , एकदंत भगवान 

आश्रय में निज लीजिए, बालक मैं अनजान। 

4:

रिद्धि-सिद्धि दायी तुम्हीं, दो शुभता का  दान 

ज्ञान विशारद ईश हे , प्रज्ञा दो वरदान।। 

5:

हे देवा प्रभु विनायका, गौरी पुत्र गणेश।

प्रथम पूजता जग तुम्हें , दूर करो तुम क्लेश।। 

6:

मुख पर दमके है प्रभा, कंठी स्वर्णिम  हार।

प्रभु विघ्न को दूर करो, हो भव सागर पार ।। 

7:

ज्ञानवान कर दो मुझे , माँगूँ यह वरदान।

शरण तुम्हारे मैं पड़ी,  देवा कृपा निधान।। 

8:

दुखहर्ता रक्षक तुम्हीं, तुम हो पालन हार।,

पार करो भव मोक्षदा, तुम ही हो भर्तार ।। 

9:

मंगलमूर्ति कष्ट हरो, संकट में है जान ।

आयी हूँ प्रभु द्वार मैं , रखिए मेरा मान ।।

10:

हे गणपति गणराज हे, दर्शन की है प्यास 

देव मेरी पीर हरो,तुमसे ही है आस।। 

Tuesday, August 25, 2020

हिंदी दिवस... भाषण


Hindi diwas
हिन्दी दिवस 







दोहा :
हिंदी भाषा सुन सदा, गर्वित मन का व्योम। 
निज भाषा यह रस भरी , हर्षित होता लोम ।। 

प्रिय शिक्षक साथियों,

आपके समक्ष प्रस्तुत है हिंदी दिवस भाषण का एक उदाहरण. उम्मीद है आपकी सहायता हो सकेगी.
( आपके किसी काम आ सकूँ तो अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें. आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुमूल्य है)
................ 🎤🎤🎤🎤🎤🎤🎤🎤......................

प्रातः प्रणाम...


माननीय प्रधानाचार्य, शिक्षक गणों, शिक्षिकाओं और यहां उपस्थित सभी विद्यर्थियों.... मुझे यहां आमंत्रित करने के लिए सर्वप्रथम मैं आप सभी सुधि जनों का हृदयतल से आभार प्रकट करना चाहूंगी. आज का कार्यक्रम देखकर मन प्रफुल्लित हो उठा. सभी बच्चे इतने गुणी और इतने प्रतिभाशाली हैं कि निर्णय लेना मुश्किल हो रहा था कि विजेता किसको घोषित किया जाए..

बच्चों, निर्णायक की कुर्सी पर बैठना गर्व की बात जरुर है पर यकीन मानिए उस पद के साथ इंसाफ़ करना उतना ही मुश्किल...

मैं हिंदी भाषा की कोई बहुत बड़ी ज्ञानी नहीं हूँ कि हिंदी विषय की गहराइयों तक पहुंच पाऊँ. हिन्दी बहुत ऊँची है. शायद इतनी कि हम उसकी ऊंचाई का अंदाजा भी नहीं लगा सकते.

वर्तमान समय में हिंदी का जो स्तर है उसे देखकर बड़ी निराशा होती है. यह स्तर धीरे धीरे नीचे गिरता जा रहा है. उसका लगातार ह्रास हो रहा है.

बच्चों,  हम हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाते हैं क्या  आपको नहीं लगता कि  हम सूखते हुए वृक्ष की पत्तियों को सींच रहे हैं.

हम भूल जाते हैं कि कोई भी पेड़ हरा- भरा,  विशाल व छायादार तभी रह सकता है  जब हम उसकी जड़ों को सींचे. उसकी ठीक तरह से देखभाल करें. मुझे डर है कि  जिस तरह देव भाषा संस्कृत मात्र वेदों और पुराणों की पुस्तकों में सिमट गई है. आज केवल गिने चुने लोग ही है जो उसे बोलते और समझते हैं. उसी तरह आज की स्थिति यदि यूँ ही बरकरार रहती है तो कहीं हमारी यह भाषा भी अपना अस्तित्व न खो दे और केवल पुस्तकों में सिमट कर ही न रह जाए.

इसका कारण केवल यही है कि हम अपनी भाषा को बेहद हीन समझते हैं।हम हिन्दी बोलने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं. हिन्दी को कुलियों की और अँग्रेजी को कुलीनों की भाषा समझते हैं.

बच्चों, यह बात किसी से भी छिपी नहीं है कि जापान जैसा छोटा सा देश, जो हमारे देश से पूरे 9  गुना छोटा है  विश्व युद्ध में पूरी तरह से बर्बाद होने के बाद भी किस तरह से उठ खड़ा हुआ. आज तकनीक के मामले में उसकी साख मानी जाती है. उनकी इस तरक्की के पीछे का राज है... उनकी अपनी भाषा में व अपनी संस्कृति में उनका गहन विश्वास. उनकी लगन और उनका कड़ा परिश्रम.


इतिहास गवाह है कि तकनीक हो या ज्ञान, ये कभी किसी भाषा के मोहताज नहीं रहे. और दूसरों का मुँह ताकने वाले कभी सफल भी नहीं हुए.

वे सभी देश जो विकसित देशों की सूची में आते हैं. यदि आप उनके बारे में अध्ययन करें तो पाएंगे कि सभी देश अपनी ही भाषा का प्रयोग करके तरक्की की सीढियां चढ़े. उन्होंने दूसरी भाषा की शरण नहीं ली..

बच्चों विभिन्न भाषाओँ का ज्ञान होना बहुत अच्छी बात है. परन्तु दूसरी भाषा के मोह में अपनी भाषा का तिरस्कार  करना  या अपनी भाषा को बोलने में शर्माना  कहाँ तक सही है? जरा सोचिए...

धन्यवाद...


Sunday, August 23, 2020

एंकरिंग स्क्रिप्ट (हिंदी दिवस)



मेरे प्रिय शिक्षक मित्रों व प्रिय छात्रों ,

हिन्दी दिवस निकट आ रहा है इसलिए यहाँ उदाहरणार्थ हिन्दी दिवस की एंकरिंग स्क्रिप्ट  आप सबकी सहायता के लिए प्रस्तुत है. आवश्यकतानुसार आप इसमें परिवर्तन कर सकते हैं.
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हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में आप सभी का सहर्ष स्वागत है
आदरणीय निर्णायक गण, सभी शिक्षिकाएँ व यहां उपस्थित सभी विद्यर्थियों को प्रातः प्रणाम!
हमारे प्यारे प्यारे विद्यार्थी
प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी हिंदी की विभिन्न विधाओं व विभिन्न रंगों की छटा बिखेरते हुए और प्रथम चरण को पार करते हुए अंतिम चरण तक आ पहुँचे हैं . पिछले वर्षों तक हम अर्थात कक्षा 9 और 10 के विद्यार्थी हास्य कविता का आनंद लेते रहे थे परंतु इस वर्ष अंग्रेजी की परफॉर्मेंस पोयम की तर्ज पर  हमने भी हिंदी में performance poem करने की सोची. और नतीजा आपके सामने है अब इस साल हम इस विधा का भी आनंद उठाएंगे.

सच मानिए इस विधा की प्रस्तुति आसान नहीं होती, क्योंकि एक दूसरे के साथ सामंजस्य बिठाना आसान नहीं होता.
फिर भी हमारे इन विद्यार्थियों ने जी तोड़ मेहनत की है.
और वैसे भी ....... विद्यालय के विद्यार्थी किसी भी मामले  में किसी से कम नहीं है वो तो चाहे तो क्या नहीं कर सकते!!!!

निर्णायक पद की कुर्सी पर शोभायमान है... प्यारी प्यारी..... मैम (महोदया) , और  हिन्दी भाषा विज्ञ हमारी प्यारी मैम (महोदया ) ...
तो एक बार जोरदार तालियों से स्वागत करते हैं हमारे  निर्णायक गणों का..

आइए अब शुरुआत करते हैं अपने कार्यक्रम का..
सबसे पहले आ रहे हैं
1...... और उनका ग्रुप जिनकी कविता का शीर्षक है - ..


बहुत बढिया.. बहुत बढ़िया..

अगली प्रतिभागी हैं --
2:.......
जिनका साथ दे रही है.... . और इनकी कविता का शीर्षक है -..... .



भई वाह... बहुत खूब..
मुझे तो गब्बर की बात याद आ गई.. जो  डर गया.. वो मर गया..

अपनी कविता - शुक्र है शिक्षक हूँ कोई और नहीं ! "प्रस्तुत करने आ रही है ---

3:.......... (छात्रों के नाम)
 तो जोरदार तालियों से स्वागत कीजिए हमारी
इस जोड़ी का..



कमाल.. कमाल.. कमाल...

अब बारी है उनकी..  इतिहास का भूत... जिनका कभी पीछा ही नहीं छोड़ते...
चलिए उनका भी दुखड़ा सुन लेते हैं और बुलाते हैं
4:.......... के ग्रुप(समूह ) को...
तालियाँ........



वाह... वाह.. वाह  मजा आ गया
सचमुच... मुझे भी यकीन हो गया है कि इतिहास  का भूत बहुतों को डराने की ताकत रखता है..

चलिए इतिहास की बात इतिहास में दफन करते हैं और बुलाते हैं अपने अगले प्रतिभागियों को...
  अरे ये क्या... हमारे अगले प्रतिभागी भी हमें इतिहास की  ही सैर कराने आ रहे हैं ...
 ..बच्चों... वीर रस से ओत प्रोत यह कविता हमारे और आपके भीतर देशभक्ति जागृत करने के लिए काफी है ...

तो चलिए सुनते हैं अगली कविता... खूब लड़ी मरदानी.... जिसे प्रस्तुत करने आ रही है...
5:....... (छात्रों के नाम)
स्वागत कीजिए इनका जोरदार तालियों से...





भई वाह.. रानी लक्ष्मी बाई.. जिसकी वीरता और साहस के अंग्रेजों को मुँह की खान पड़ी थी. ऐसी वीरांगना को हमारा शत शत नमन

बच्चों... आगे बढ़ते हैं और बुलाते हैं
अपने अगले प्रतियोगियों को जो कुछ ढूंढ रहे हैं पर उन्हें मिल नहीं रहा है
आपको उनकी मदद की आवश्यकता है
चलिए बुलाते हैं..

6:........... के ग्रुप को और जानते हैं कि आखिर वे ढूँढ क्या रहे हैं???



बहुत खूब... बहुत खूब...

सचमुच शोचनीय बात है कि आखिर ये सब कहाँ नदारद हो गए!!!

खैर.. अब बारी आती है अगले ग्रुप को बुलाने की
जो बड़े दावे के साथ कहते है..
मैं वीर हूँ.. डरपोक नहीं...
जोरदार तालियाँ हो जाए
7:...... और उसके ग्रुप के लिए...


बहुत बहुत बहुत.. अच्छी प्रस्तुति...
और आप लोग बिल्कुल भी डरपोक नहीं...
...
बच्चों... अब हम अपने आखिरी पड़ाव पर पहुँच चुके हैं इसलिए बुलाते हैं अपने अगले ग्रुप को...
...... आ रहे हैं...
अपनी कविता  -...... "" लेकर ...
जोरदार तालियों से स्वागत कीजिए हमारे आखिरी प्रतिद्वंदियों का....
तालियाँ......


बहुत अच्छा प्रदर्शन....

इसी के साथ हमारी यह प्रतियोगिता समाप्त होती है..
अब मैं आपसे रूबरू होने के लिए आमंत्रित करना चाहूंगी..... मैम को..
........ मैम ....

धन्‍यवाद!!!!





Monday, July 13, 2020

एक गुड़िया माँ मुझे दिला दो


एक गुड़िया मुझे दिला दो माँ:
(स्थायी 17,16 अंतरा 16,16)



एक गुड़िया मुझे दिला दो माँ , 
मैं उसका ब्याह रचाऊँगी ।
लाल नारंगी पीत सुनहरे,  
वसनों से उसे सजाऊँगी ।।

गोरे रंगों वाली गुड़िया,
माँ आँखें नीली-नीली हों ।
सुंदर-सुंदर केशों वाली ,
लगती जो छैल छबीली हो ।।
निश दिन उसके संग खेलूँगी ,
अरु बाहर भी ले जाऊँगी ।

सीखूँगी जो विद्यालय में ,
वह आकर उसे पढाऊँगी।
कभी डॉक्टर ,इंजीनियर अरु ,
वैज्ञानिक कभी बनाऊँगी ।।
तुम जैसे माँ ममता लुटाती,
मैं उससे लाड़ लड़ाऊँगी।

भूख लगेगी जब गुड़िया को,
बर्गर व पिज्जा खिलाऊँगी ।
सखियों-सा चाहूँगी उसको,
रूठी तो उसे मनाऊँगी ।
आएगी निंदिया रानी जब,
लोरी तब उसे सुनाऊँगी।


Monday, June 1, 2020

भारत में टिड्डी हमला

भारत में टिड्डी हमला...... पर क्या हम इसके लिए तैयार हैं ????

क ओर से  चीन हमें आँखें  दिखा रहा है तो दूसरी ओर नेपाल भी नए तेवर में नजर आ रहा है।कोरोना, अम्फान, भूकंप, जैसी विपदाएँ क्या कम थी जो टिड्डियाँ भी अपना विनाशकारी रूप ले भारत पर चढ़ाई कर बैठी हैं। 
पिछले कई महीनों से कोरोना वायरस से जूझ रहे भारत के लिए टिड्डियों ने बैठे बिठाए एक नई मुसीबत खड़ी कर दी है। कई प्रदेशों में टिड्डी दल ने किसानों से लेकर आम जनता को भी परेशान करना शुरू कर दिया है।

टिड्डे (locust/grasshopper) लघु श्रृंगीय टिड्डे प्रवासी कीट होते हैं। जिनकी उड़ान दो हजार मील तक होती है। जब वे अकेले होते हैं तो वे हानिरहित होते हैं, लेकिन जब उनकी आबादी बढ़ जाती है तो वे विनाशकारी हो जाते हैं और फसलों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाते हैं। भारत में 1964-1997 के दौरान 13 बार टिड्डों के हमले का सामना किया गया है। भारत में जोधपुर में टिड्डी चेतावनी संगठन है।

अतीत में, भारत में टिड्डी हमले खरीफ के मौसम के दौरान जून से नवंबर तक देखे गए हैं। हालांकि इस साल शुरुआती बारिश के कारण हमला जल्दी हुआ। वर्षा में वृद्धि टिड्डियों को प्रजनन भूमि प्रदान करती है। हिंद महासागर का द्विध्रुवीय(Indian ocean dipole) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सकारात्मक आईओडी (Iod)भारत और पूर्वी अफ्रीकी क्षेत्र जैसे सूडान में उच्च वर्षा का कारण बनता है।

झांसी मंडल के उप कृषि निदेशक के अनुसार यह टिड्डी दल ईरान में पैदा हुआ, जो पाकिस्तान के रास्ते भारत पहुँचा है।लॉक डाउन में मानव गतिविधियाँ कम हो जाने के कारण टिड्डियों की संख्या अब अरबों में पहुँच गई है।

टिड्डे के दल ने पश्चिमी भारत में पाकिस्तान से प्रवेश किया और राजस्थान, हरियाणा पंजाब मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश पर हमला किया।अभी जुलाई तक राजस्थान में टिड्डी दलों के कई हमले जारी रहने की आशंका जताई जा रही है।वे उत्तर भारत के अलावा बिहार और उड़ीसा भी पहुँच सकते हैं।
टिड्डियों का उपद्रव शुरू हो जाने के बाद  उन्हें नियंत्रित करना कठिन हो जाता है। इसपर नियंत्रण पाने के लिए हवाई जहाज से विषैली ओषधियों का छिड़काव, विषैले चारे में भीगी हुई गेहूँ की भूसी का फैलाव इत्यादि, उपयोगी होता है।
हालांकि सरकार ने किसानों को इन टिड्डियों द्वारा फसलों को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए कीटनाशकों का उपयोग करने के लिए कहा है।

Thursday, April 9, 2020

'कि की' की कहानी


धुन :आओ सिखाएँ तुम्हें अंडे का फंडा

आओ सुनायें "कि" "की" की कहानी।
छोटी - सी एक बात है, तुमको बतानी।
एक है छोटी (ह्रस्व) "कि"
और दूजी बडी  (दीर्घ ) "की"
सुनने में एक समान, पर फर्क बड़ा जी।
सुनने में एक समान, पर फर्क बड़ा जी।

बड़ी की है जोड़ती, दो शब्दों को। 
छोटी कि है जोड़ती, दो वाक्यों को। 

"राम की माँ का ,नाम है रीमा"
कौन-सी की आई ?जरा मुझको बताना
बोलो .....
कौन-सी की आई ? जरा मुझको बताना

बड़ी "कीऽऽऽ..."
हाँ.....बड़ी कीऽऽऽ...
एक वाक्य का एक अंश, होती है बड़ी की।
एक वाक्य का एक अंश, होती है बड़ी की।

आओ सुनायें "कि" "की"  की कहानी।
छोटी सी एक बात, है मुझे तुमको बतानी।
एक है छोटी कि, और दूजी बड़ी की।
सुनने में एक समान, पर फर्क बड़ा जी।


संवाद जब भी आये, आती है छोटी "कि"
जैसे,राम ने कहा कि मुझे घर जाना है। "
श्याम ने कहा कि उसे खाना खाना है।"

कौनसी "की" आई ?जरा मुझको बताना
बोलो .....
कौनसी 'की 'आई ?जरा मुझको बताना
छोटी "किऽऽऽ..."
हाँ ...."छोटी ऽऽऽ..."
तो जोड़ने का काम करती है छोटी कि
हाँ हाँ.. जोड़ने का काम करती है छोटी कि।

("कि" और" कि" हिंदी के ऐसे शब्द हैं जो बहुधा हमें भ्रमित कर देते हैं। कई बार समझ नहीं आता कि छोटी मात्रा लगेगी या बड़ी मात्रा। इसी के विधान (नियम) को कुछ उदाहरणों के साथ इस छोटी से कविता के माध्यम से यहाँ प्रस्तुत करने का एक छोटा सा प्रयास किया है मैंने।उम्मीद है यह कविता आपके काम आएगी।) 

Thursday, February 20, 2020

मक्खी और मधुमक्खी.. बाल कविता

मक्खी 

मक्खी की मधुमक्खी से
हो गई भोर में भेंट।
जल्दी खूब थी मक्खी को
और हो गई थी व‍ह लेट।।

मक्खी बोली, " हे मधुप,
रोको न मुझे,
बड़े जोर की भूख लगी है,
कर नहीं सकती वेट!
कूडे वाला आ जाएगा,
सारा कूड़ा ले जाएगा!
फिर मैं भूखी रह जाऊँगी,
मेरा नहीं भरेगा पेट!

मक्खी की सुनकर बातें,
 मधुमक्षिका बोल उठी  ,
" मत घबराओ मक्खी तुम,
मैंने एक बगिया है देखी-

जहाँ रंग बिरंगे फूल खिले,
हरे, गुलाबी, नीले, पीले!

तुम भी रस पान वहाँ करना,
नहीं स्वाद मिले तो फिर कहना!
अहा,
चम्पा की महक के क्या कहने,
मुँह से पानी लगता बहने!

गुड़हल का रंग लुभाता है!
गेंदा भी बड़ा सुहाता है!

पारिजात, और कनेर भी,
स्वाद बड़ा ही देते हैं।
सूरजमुखी और सदाबहार,
मन मोह हमारा लेते हैं।
चल माखी हम उस देश चलें,
जहाँ भाँति भाँति के पुहुप खिले!

सुनकर बातें मधुमक्खी की
घृणा हो गई मक्खी को।
 बोली, "सुन मधुप ध्यान से बात मेरी,
यह सब मैं बिलकुल ना खाती।
मैं कूडे में हूँ सुख पाती।।

अपना ही राग लगी गाने!
खाने का स्वाद तू क्या जाने !

चल तुझे आज बतलाती हूँ,
खाना तुझको सिखलाती हूँ।।
व‍ह देख नाली में मल है जो,
चल स्वाद चखें, स्वादिष्ट है वो।।

तू देख रहा उस बालक को,
रिस रहा है पस जिसके तन से!
वही मुझको अच्छा लगता है,
पीती हूँ खूब बड़े मन से!
उस स्वाद के आगे सबकुछ फेल
तेरा मेरा है नहीं  मेल!

सुनकर बातें मक्षिका की
मधुमक्खी ने बिचकाया मुँह!
बोली, " तुम गंदा ही तो खाती हो
छीः  ऊपर से इतराती हो!
कभी शहद बनाकर भी चख लो!
अरे थोड़ी सी मेहनत कर लो!

य़ह सुन मक्खी को आया क्रोध,
 बोली," तुझको  कुछ नहीं बोध।।
 सुन बात मुमाखी बतलाऊँ,
तेरे झांसे में, मैं न आऊँ!
इतनी मेहनत मैं करूँ क्यों,
जब मुफ्त में सबकुछ पाती हूँ!
अरे पका - पकाया खाती हूँ,
और सुख का जीवन जीती हूँ!

 यह सुन मधु मक्खी दंग हुई,
सोचा मैं व्यर्थ में तंग हुई।।
मक्खी तो आखिर मक्खी है,
गंदगी पे ही तो बैठेगी।।

छोड़ के मक्खी का परिवेश,
उड़ गई मधुमक्खी अपने देश।।



Saturday, February 15, 2020

छत्रपति शिवाजी.... हिन्दी पोवाड़ा




जी जी जी जी........
राजे ऐसा सत्ताधारी, राजे ऐसा सत्ताधारी
जी जी जी जी........

धन्य हो गई धरा राष्ट्र की, गूँज उठी थी शिवऩेरी 
पशु पक्षी भी लगे नाचने, पुलकित थे सब नर नारी 

जन्म लिया जब छत्रपति ने बजने लगी थी रणभेरी 
लाल महल में गूंज उठी थी राजे की किलकारी

चहक उठी तब भारत भूमि, छंट गई रात अँधेरी 
जीजाऊ ने तब भड़काई स्वराज की चिनगारी   

अस्त्र शस्त्र, शास्त्रों की ज्ञाता, थी वीरांगना नारी 
ज्ञान देती थी शिवराजे को सबका बारी बारी 

अग्नि स्वराज की लगी धधकने, उठा ली जिम्मेदारी
सब के दिल में राज किया, था ऐसा
सत्ताधारी

शिवराया सत्ताधारी, राजे ऐसा सत्ताधारी
जी जी जी जी........


Friday, February 7, 2020

माँ बतलाओ....बाल गीत


माँ बतलाओ , चंदा मामा
घर पर क्यों नहीं आते हैं !

राजू मामा, चिंटू मामा 
सब अपने घर आते हैं !
रक्षा बंधन पर सब तुमसे
राखी भी बँधवाते हैं 

खेल -खेलकर संग मेरे  
सब मेरा मन बहलाते हैं
रानी बहना से भी वे सब
कितना लाड लड़ाते हैं l

फिर बोलो माँ चंदा मामा 
क्यों अपने घर नहीं आते हैं 

माँ, इसका कुछ राज़ तो खोलो ...
क्यों हमसे रूठे वे बोलो ....
चौथ पूर्णिमा ,जल तुम देती 
तुम उनकी पूजा भी करती
फिर भी  वो  इतराते हैं ...

बोलो माँ, क्यों चंदा मामा 
घर अपने नहीं आते हैं ..

सुन मेरे मुन्ने ,बात बताऊँ...
तुमसे न कोई राज छुपाऊँ...
चंदा मामा व्यस्त बड़े हैं
उनके सिर कई काम पड़े हैं...

मेरे तुम्हारे सब के लिए ही
दूर देश वे जाते हैं
जेब में उजियारे को भरकर
लौट के फिर वे आते हैं
रात में मुन्ने धवल उजाला
 हम उनसे ही पाते हैं
दिन में सूरज खूब जलाता
 वे इसीलिए छिप जाते हैं


माँ समझा अब बात पते की
तभी तो थक  वे जाते हैं
और कभी दिखते हैं दुर्बल
कभी फूल के कुप्पा होते हैं


हम इतवार मनाते जैसे
वे प्रतिपदा मनाते हैं
शनिवार हम छुट्टी करते 
अमाँ में वे सोने जाते हैं।

माँ  , परहित में चंदा मामा
कितना कुछ सह जाते हैं
ठंडी, गर्मी, बारिश में भी
अपना फर्ज निभाते हैं।

हाँ जाना क्यों चंदा मामा 
अपने घर नहीं आते हैं ...


©®सर्वाधिकार सुरक्षित
सुधा सिंह 'व्याघ्र'





Saturday, February 1, 2020

जिजीविषा



नव रूप, रंग, आस
हरित मखमली गात
नव जिजीविषा के साथ
मैं प्रस्फुटित हूँ आज

नव सूर्य उम्मीदों का
है संग संग मेरे सदा
लड़ना है हर झंझा से
खानी नहीं मुझे मात

शुचि निर्मल तुहिन तन
मधुरिम परिवेश से निज बंधन
यही ऐषणा हिय की अहो
बढ़ता रहूँ दिन रात

परमार्थ ही है लक्ष्य
नहीं खिन्न , जो बनूँ भक्ष्य
जीवन मिला सुनहरा
उसे क्यों गवाऊँ तात्

निज धर्म और कर्म से
कर ना सकूँ प्रतिघात
लड़ता रहूँ परिवेश से
सो प्रस्फुटित हूँ आज











Wednesday, January 29, 2020

बिल्ली रानी.. बाल गीत





बिल्ली ने इकदिन शीशे में,
देखी जब मतवाली चाल।
फूली नहीं समाई,
सोचा.. मैं तो चलती बड़ा कमाल।।

चाल पे मेरी दुनिया कायल,
अब चाल पे टैक्स लगाऊँगी।
ढेरों पैसे मिलेंगे मुझको ,
 मालामाल  हो जाऊँगी ।।

मेरी कैट वॉक देखने,
चीते - शेर भी आयेंगे।
ऐसा अंदाज़ दिखाऊँगी,
जिसे भूल नहीं वो पाएँगे।।
विश्व में मेरे चर्चे होंगे ,
होगा चारों ओर धमाल ।
बस थोड़ा - सा डायट कर लूँ ,
और पिचका लूँ अपने गाल।।

कुत्ते को रख लूँगी नौकर ,
मूषक ढूँढ वो लाएगा ।
उसने मेरी बात न मानी ,
तो व‍ह जूते खाएगा ।।
मालकिन की बात को टाले,
उसकी ऐसी नहीं मज़ाल ।
नहीं बचेगा मेरे हाथों ,
अगर करेगा टालम-टाल ।।

इन्हीं ख़यालों में डूबी थी ,
पीछे से कोई गुर्राया ।
सपनों में जिसे नौकर रखा ,
अरे रे..वही उसे खाने आया।।
सरपट भागी बिल्ली रानी ,
मन से निकले सभी खयाल ।
जान बच गई वही बहुत है ,
अब न चलूँ मतवाली चाल ।।



सुधा सिंह व्याघ्र












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