नव रूप, रंग, आस
हरित मखमली गात
नव जिजीविषा के साथ
मैं प्रस्फुटित हूँ आज
नव सूर्य उम्मीदों का
है संग संग मेरे सदा
लड़ना है हर झंझा से
खानी नहीं मुझे मात
शुचि निर्मल तुहिन तन
मधुरिम परिवेश से निज बंधन
यही ऐषणा हिय की अहो
बढ़ता रहूँ दिन रात
परमार्थ ही है लक्ष्य
नहीं खिन्न , जो बनूँ भक्ष्य
जीवन मिला सुनहरा
उसे क्यों गवाऊँ तात्
निज धर्म और कर्म से
कर ना सकूँ प्रतिघात
लड़ता रहूँ परिवेश से
सो प्रस्फुटित हूँ आज
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (03-02-2020) को 'सूरज कितना घबराया है' (चर्चा अंक - 3600) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
ReplyDeleteपरमार्थ ही है लक्ष्य
नहीं खिन्न , जो बनूँ भक्ष्य
जीवन मिला सुनहरा
उसे क्यों गवाऊँ तात्
बहुत ही सुन्दर सार्थक लाजवाब सृजन
वाह!!!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर सुधा जी! नव पल्लव और नवांकुर का आशा गायन बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteनिज धर्म और कर्म से
ReplyDeleteकर ना सकूँ प्रतिघात
लड़ता रहूँ परिवेश से
सो प्रस्फुटित हूँ आज
बहुत खूब.... ,बेहतरीन सृजन ,सादर नमन