एक गुड़िया मुझे दिला दो माँ:
(स्थायी 17,16 अंतरा 16,16)
एक गुड़िया मुझे दिला दो माँ ,
मैं उसका ब्याह रचाऊँगी ।
लाल नारंगी पीत सुनहरे,
वसनों से उसे सजाऊँगी ।।
गोरे रंगों वाली गुड़िया,
माँ आँखें नीली-नीली हों ।
सुंदर-सुंदर केशों वाली ,
लगती जो छैल छबीली हो ।।
निश दिन उसके संग खेलूँगी ,
अरु बाहर भी ले जाऊँगी ।
सीखूँगी जो विद्यालय में ,
वह आकर उसे पढाऊँगी।
कभी डॉक्टर ,इंजीनियर अरु ,
वैज्ञानिक कभी बनाऊँगी ।।
तुम जैसे माँ ममता लुटाती,
मैं उससे लाड़ लड़ाऊँगी।
भूख लगेगी जब गुड़िया को,
बर्गर व पिज्जा खिलाऊँगी ।
सखियों-सा चाहूँगी उसको,
रूठी तो उसे मनाऊँगी ।
आएगी निंदिया रानी जब,
लोरी तब उसे सुनाऊँगी।
No comments:
Post a Comment
पाठक की टिप्पणियाँ किसी भी रचनाकार के लिए पोषक तत्व के समान होती हैं .अतः आपसे अनुरोध है कि अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों से मुझे वंचित न रखें।