Tuesday, August 25, 2020

हिंदी दिवस... भाषण


Hindi diwas
हिन्दी दिवस 







दोहा :
हिंदी भाषा सुन सदा, गर्वित मन का व्योम। 
निज भाषा यह रस भरी , हर्षित होता लोम ।। 

प्रिय शिक्षक साथियों,

आपके समक्ष प्रस्तुत है हिंदी दिवस भाषण का एक उदाहरण. उम्मीद है आपकी सहायता हो सकेगी.
( आपके किसी काम आ सकूँ तो अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें. आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुमूल्य है)
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प्रातः प्रणाम...


माननीय प्रधानाचार्य, शिक्षक गणों, शिक्षिकाओं और यहां उपस्थित सभी विद्यर्थियों.... मुझे यहां आमंत्रित करने के लिए सर्वप्रथम मैं आप सभी सुधि जनों का हृदयतल से आभार प्रकट करना चाहूंगी. आज का कार्यक्रम देखकर मन प्रफुल्लित हो उठा. सभी बच्चे इतने गुणी और इतने प्रतिभाशाली हैं कि निर्णय लेना मुश्किल हो रहा था कि विजेता किसको घोषित किया जाए..

बच्चों, निर्णायक की कुर्सी पर बैठना गर्व की बात जरुर है पर यकीन मानिए उस पद के साथ इंसाफ़ करना उतना ही मुश्किल...

मैं हिंदी भाषा की कोई बहुत बड़ी ज्ञानी नहीं हूँ कि हिंदी विषय की गहराइयों तक पहुंच पाऊँ. हिन्दी बहुत ऊँची है. शायद इतनी कि हम उसकी ऊंचाई का अंदाजा भी नहीं लगा सकते.

वर्तमान समय में हिंदी का जो स्तर है उसे देखकर बड़ी निराशा होती है. यह स्तर धीरे धीरे नीचे गिरता जा रहा है. उसका लगातार ह्रास हो रहा है.

बच्चों,  हम हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाते हैं क्या  आपको नहीं लगता कि  हम सूखते हुए वृक्ष की पत्तियों को सींच रहे हैं.

हम भूल जाते हैं कि कोई भी पेड़ हरा- भरा,  विशाल व छायादार तभी रह सकता है  जब हम उसकी जड़ों को सींचे. उसकी ठीक तरह से देखभाल करें. मुझे डर है कि  जिस तरह देव भाषा संस्कृत मात्र वेदों और पुराणों की पुस्तकों में सिमट गई है. आज केवल गिने चुने लोग ही है जो उसे बोलते और समझते हैं. उसी तरह आज की स्थिति यदि यूँ ही बरकरार रहती है तो कहीं हमारी यह भाषा भी अपना अस्तित्व न खो दे और केवल पुस्तकों में सिमट कर ही न रह जाए.

इसका कारण केवल यही है कि हम अपनी भाषा को बेहद हीन समझते हैं।हम हिन्दी बोलने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं. हिन्दी को कुलियों की और अँग्रेजी को कुलीनों की भाषा समझते हैं.

बच्चों, यह बात किसी से भी छिपी नहीं है कि जापान जैसा छोटा सा देश, जो हमारे देश से पूरे 9  गुना छोटा है  विश्व युद्ध में पूरी तरह से बर्बाद होने के बाद भी किस तरह से उठ खड़ा हुआ. आज तकनीक के मामले में उसकी साख मानी जाती है. उनकी इस तरक्की के पीछे का राज है... उनकी अपनी भाषा में व अपनी संस्कृति में उनका गहन विश्वास. उनकी लगन और उनका कड़ा परिश्रम.


इतिहास गवाह है कि तकनीक हो या ज्ञान, ये कभी किसी भाषा के मोहताज नहीं रहे. और दूसरों का मुँह ताकने वाले कभी सफल भी नहीं हुए.

वे सभी देश जो विकसित देशों की सूची में आते हैं. यदि आप उनके बारे में अध्ययन करें तो पाएंगे कि सभी देश अपनी ही भाषा का प्रयोग करके तरक्की की सीढियां चढ़े. उन्होंने दूसरी भाषा की शरण नहीं ली..

बच्चों विभिन्न भाषाओँ का ज्ञान होना बहुत अच्छी बात है. परन्तु दूसरी भाषा के मोह में अपनी भाषा का तिरस्कार  करना  या अपनी भाषा को बोलने में शर्माना  कहाँ तक सही है? जरा सोचिए...

धन्यवाद...


5 comments:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 27 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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  2. बहुत अच्छी प्रेरक प्रस्तुति
    सच है बिना अपनी भाषा के हृदय का शूल नहीं जाता। इसलिए भारतेन्दु जी इसे बड़े ही सटीक ढंग से बताया कि --
    निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,
    बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल'।

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  3. वाह!सुधा जी ,बहुत ही खूबसूरत और प्रेरणादायक प्रस्तुति ।

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  4. हिन्दी दिवस हिन्दी की महत्ता को समझाता बहुत ही अच्छा भाषण...सही कहा अपनी भाषा कघ उन्नति में ही अपनी उन्नति है अपने देश की उन्नति है।

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  5. वाह बहुत बढ़िया वर्णन।बेहतरीन

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