Friday, October 25, 2019

प्रयाण कर..

तिरंगा झंडा



प्रयाण कर प्रयाण कर, तू मत किसी से आज डर।
माँ भारती का पुत्र तू, माँ भारती पर नाज कर ।।
देश का प्यारा तिरंगा, झुकने कभी पाए नहीं ।
उत्तुंग शिखर हिमगिरि का, पुकारता प्रयाण कर।।

 प्रयाण कर, प्रयाण कर.....

जाति - पाँती भेदभाव, रंग - द्वेष भूल कर।
मनुष्यता की राह में, सद्भाव का प्रसार कर।।
संत मुनियों की धरा ये, त्राहि त्राहि कर रही ।
आतंक के आकाओं का, समूल तू विनाश कर।।

 प्रयाण कर, प्रयाण कर.....

नापाक इरादों के संग, है शत्रु आगे बढ़ रहा।
चीर कर शत्रु का सीना , देश को निहाल कर।।
ध्वस्त कर शत्रु का दुर्ग, नवराष्ट्र का निर्माण कर।
व्योम पर फहरा तिरंगा, गगन को प्रस्थान कर।।

प्रयाण कर, प्रयाण कर.....

कारवां अतिवात का, गुबार संग ला रहा।
है काल यह निशिथ का , आलोक का प्रसार कर।।
मिसाल वीरता की तू, तू लाल, बाल, पाल है।
तेरी कीर्ति धूमिल न हो, तू कुछ नया विधान कर।।

प्रयाण कर, प्रयाण कर.....

प्राचीन बंध तोड़ दे , और लीक से हटकर तू चल।
पुकारती मंजिल खड़ी, तू राष्ट्र का उत्थान कर।।
हर रोज दिवाली मने, चहुँ ओर बिखरे रोशनी।
दीप जगमगा उठे, रावण का मर्दन मान कर।।

 प्रयाण कर, प्रयाण कर.....         

Sunday, October 13, 2019

माँ शारदे....( गेय वन्दना)

Saraswati puja 


हे शारदे , माँ शारदे, अपनी शरण में लीजिए! 
ज्ञान चक्षु खोलकर, विद्या का वर हमें दीजिए!! 

अज्ञानी हैं, दोषी हैं हम, निर्दोष हमको कीजिए! 

पंथ से भटके हुए हैं , सुलभ पथ को कीजिए!! 

श्वेतांबरा, माँ सरस्वती, चित्त है बड़ा व्याकुल मेरा! 

आध्यात्म का वरदान दे, उत्कर्ष मेरा कीजिए!! 

है तिमिर का आतंक चहुँ दिश, मलिनता आछन्न है! 

इस स्याह कलुषित भीषिका का नाश समुचित कीजिए!! 

मद, मोह, ईर्ष्या, द्वेष हमपर, हावी कभी न हो, ऐ माँ! 

तुम हो दया की मूर्ति उपकार हम पर कीजिए!! 

हे ज्ञानदा, माँ शतरूपा , मैं करूँ आवाहन आपका ! 

सब बंधनों से मुक्तकर, मन को आलोकित कीजिए!! 
  

Saturday, October 12, 2019

बचपन....

बाल्यावस्था
बचपन 

बचपन!!! 
कहो, किस नाम से तुम्हें पुकारूँ! 
बेफिक्री, निश्छलता, निश्चिंतता, 
किस शब्‍द से उच्चारूँ! 

तुमसे जुड़े हर नाम से सुखद पय ही तो 
रिसता पाया! 
धूप हो, बारिश हो, सर्दी हो या गर्मी 
तुमने जीवन को सदा उमंगों से सजाया! 

कभी बाहर, कभी भीतर!
बस धमा-चौकड़ी दिन भर! 
कीचड़ से लथपथ और पसीने में तर! 
धूप से न होता, कभी करियाने का डर! 

कागज की नावें, चलाने की होड़! 
तितली की पूँछ में बांध दी, पतली से डोर! 

घर में मचा हल्ला, मैं सिपाही तू चोर! 
चल आज चढ़ते हैं पेड़, और तोड़ते हैं बोर! 

न भोजन की फिक्र न पढ़ाई की बातें! 
निश्चिंत दिन और निश्चिंत रातें! 

राजा के किस्से, गुड़िया की शादी! 
पापा की डांट से बचाती थी दादी! 

मेजोरिटी विंस और डाईन तेरी! 
नहीं, नहीं डाईन तेरी, न कि डाईन मेरी! 

पल वो सुनहरे और सुनहरी वो यादें! 
रहते तुम दिल में , तुम्हें कैसे भुला दें! 

इस मुरझाई बगिया के, पुष्प फिर खिला दें 
लौट आ, ओ बचपन! तुम्हें तुमसे मिला दें 





Friday, October 4, 2019

हिन्द की गौरव गाथा


Hindi diwas
हिन्दी दिवस 



हिन्द की गौरव गाथा हिन्दी, इसकी महक रूमानी है।
शहरों की ऊँची मीनारों, गांवों की मृदु बानी है।।

मीरा के एकतारे में भी, हिंदी की स्वर लहरी है।
दोहा, छंद, गीतिका इसमें,इसमें किस्से कहानी है।।

रफी लता के गीतों में भी,हिन्दी ही इठलाती है।
यह पंत, निराला, मुन्शी जी,तुलसी , कबीर की वाणी है।।

भोजपुरी, मगही, कन्नौजी ,रूप हैं इसके और कई।
ब्रज,अवधि, बुंदेली, बघेली,खोरठा, राजस्थानी है।।

हर भाव समेटे रहती है,यह मलय पवन - सी बहती है।
इतना विस्तृत भंडार है कि,नहीं कोई इसका सानी है।।

स्मरण रहे कि स्वतंत्रता के, नारे हिंदी में गूँजे थे।
फिर सौतेली अंग्रेजी ,तुम्हें क्यों कर लगे सुहानी है!!

निज भाषा की यह दुर्गति, हमें अतिशय नहीं सुहाती है।
अंग्रेज़ी प्रभुता से लड़ ,हिन्दी की आन बचानी है।।

भूलो मत, ऐ हिन्द वासियों! ये फिरंगी कारस्तानी है।।
हिन्दी की जगमग व‍ह ज्योति,हमें फिर से आज जलानी है।।


स्वरचित
©®सुधा सिंह


















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