Saturday, December 23, 2023

कलियुग (कतिपय दोहे )

कैसा कलियुग आ गया, नहीं तात का तात।

रिश्ते नाते सब मृषा, साथ देत निज गात ।। 


धर कोरोना रूप को, क्रीड़ा करता काल ।

एक तुला में सब तुले, नृप हो या कंगाल।। 


अर्थी को काँधा नहीं, वर सह नहीं बरात। 

चक्र काल का यूँ चला , जैसे वज्राघात।। 



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