कैसा कलियुग आ गया, नहीं तात का तात।
रिश्ते नाते सब मृषा, साथ देत निज गात ।।
धर कोरोना रूप को, क्रीड़ा करता काल ।
एक तुला में सब तुले, नृप हो या कंगाल।।
अर्थी को काँधा नहीं, वर सह नहीं बरात।
चक्र काल का यूँ चला , जैसे वज्राघात।।
A blog for education and information. यह ब्लॉग विशेष रूप से विद्यार्थियों के लिए तैयार किया गया है.
कैसा कलियुग आ गया, नहीं तात का तात।
रिश्ते नाते सब मृषा, साथ देत निज गात ।।
धर कोरोना रूप को, क्रीड़ा करता काल ।
एक तुला में सब तुले, नृप हो या कंगाल।।
अर्थी को काँधा नहीं, वर सह नहीं बरात।
चक्र काल का यूँ चला , जैसे वज्राघात।।