बिना बात के तू बस बढ़ता जाता है!!
जब तक तू रहता है भीतर!
तभी तक तू लगता है सुन्दर!!
बाहर आते ही तू कमर से
कमरा बन जाता है!
ऐ पेट तू मुझे बिल्कुल नहीं भाता है!!
कभी ऊपर से उचका ,
कभी नीचे से थुल-थुल लटका
तो कभी गोल-मटोल, और
बेडौल नजर आता है
ऐ पेट तू मुझे बिल्कुल नहीं भाता है!!
कोई चाय की टेबल कहता,
तो कोई बोरी अनाज की!
तेरी बिगड़ी सूरत देखकर
हर कोई मुँह बिचकाता है!!
ऐ पेट तू मुझे बिल्कुल नहीं भाता है!!
दूसरे के कंधे पर रखकर बंदूक
तू बड़े मज़े से चलाता है!
जिव्हा को भी तू अपनी उँगलियों
नचाता है!!
सच- सच बता कि जिव्हा से तेरा क्या नाता है!
ऐ पेट तू मुझे बिल्कुल नहीं भाता है!!
नमकीन, मिठाई, तीखा, कड़वा
सबकुछ तो ठूँस- ठूँस खाता है!
गैस, बदहजमी ,अपच,
सबको अपने पास बुलाता है!!
निरोगी काया को तू रोगी बनाता है!
ऐ पेट तू मुझे बिल्कुल नहीं भाता है!!
लोगों को पसंद है तारीफ अपनी
पर तू, तू तो हरदम गालियाँ खाता है!
कुछ तो शर्म कर, अरे!!!
क्यों तू अपनी इतनी बेज्जती कराता है?
अब क्या कहूँ, कितना कहूँ ऐ पेट,
बस तू मुझे बिल्कुल नहीं भाता है!!