कक्षा में पाठ्य पुस्तक या टेबलेट
मित्रों, आज मनुष्य ने विज्ञान और तकनीकी में बहुत विकास कर लिया है। अब तकनीकी के बिना रह पाना लगभग नामुमकिन सा हो गया है। इसने हमारे जीवन को बेहद सरल, आसान और सुविधाजनक बना दिया है। यह किसी से छुपा नहीं है कि शिक्षा के क्षेत्र में भी आज तकनीकी का बोलबाला है इसी तकनीकी ने ही हमें एक यंत्र दिया है जिस का नाम है टेबलेट.
आप सब भी इस गैजेट से जरूर वाकिफ़ होंगे.
पर क्या आप को लगता है कि यह छोटा सा यंत्र कक्षा में कभी पाठ्यपुस्तकों का स्थान ले सकता है... मेरा मानना है कि नहीं... यह पुस्तकों का स्थान कभी नहीं ले सकता... चलिए मान लेते हैं कि एक उंगली के इशारे से चंद मिनटों में हमें वो सभी जानकारियां प्राप्त हो जाती हैं जिनकी हमें आवश्यकता होती है...वही पुस्तक में थोड़ा अधिक समय लगता है.
.. परंतु साथियों महसूस कीजिए उस खुशबू को , जो एक नई पुस्तक से आती है.. आ हा हा.. क्या उस खुशबू को हम टेबलेट में महसूस कर सकते हैं? नहीं न....
खरीदने के बाद जब वह पुस्तक घर आती है तो किस प्रकार हम ही नहीं हमारे माता पिता भी उस पर आवरण चढ़ाने, उस पर नाम लिखने बैठ जाते हैं. जबकि टेबलेट के साथ ऐसा नहीं है....
दोस्तों, टेक्नोलॉजी ने जहां चीज़े आसान की है वहीं परिवारों को एक दूसरे से अलग भी तो कर दिया है.... पास में बैठे हैं फिर भी हमारे पास एक दूसरे से बात करने का समय ही नहीं है...
कोई नहीं जानता कि अगले के जीवन में चल क्या रहा है.. इनसे निकलने वाली हानिकारक किरणों से स्वास्थ्य पर बुरा व नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है सो अलग. कहीं कोई गलत साइट खुल गई तो मानसिक स्वास्थ्य भी बुरी तरह प्रभावित होता है...
वहीं पाठ्यपुस्तक के साथ ऐसी कोई सम्भावना या समस्या नहीं है. बल्कि पुस्तकें ही सही रूप में चरित्र निर्माण करने में सहायक होती हैं.... क्योंकि पाठ्यपुस्तकें कई विद्वानों और साहित्यकारों के गहन परिश्रम के बाद ही बाजार में उपलब्ध होती हैं.
इनमें उपस्थित पंचतंत्र की कहानियां, हितोपदेश आदि हमें नैतिकता का सही रूप से पाठ पढ़ाते हैं...
मित्रों, पुस्तकों से हमारी यादें भी जुड़ी होती हैं .जब कभी किसी कोने में पड़ी कोई पुरानी पुस्तक हाथ लग जाती है तो हमारी कई यादें भी ताज़ा हो जाती हैं।...
इसमें न वाई-फाई का खर्च, न बिजली की खपत, और न ही किसी ऐप को इंस्टाल कराने की झंझट...
गलती से गिरकर कहीं टूट फुट जाएं तो हजारों रुपयों का नुकसान अलग...
इसलिए , मैं यह कह सकती हूं कि कक्षाओं में पाठ्य पुस्तकों का स्थान टेबलेट कभी नहीं ले सकता.
पुस्तकें ही हमारी सच्ची मित्र होती हैं जो हमें ज्ञान रुपी वह अनमोल मोती देती हैं जिन्हें पिरोकर हम अपने जीवन को सही आयाम दे पाते हैं।
नई पुस्तक |
मित्रों, आज मनुष्य ने विज्ञान और तकनीकी में बहुत विकास कर लिया है। अब तकनीकी के बिना रह पाना लगभग नामुमकिन सा हो गया है। इसने हमारे जीवन को बेहद सरल, आसान और सुविधाजनक बना दिया है। यह किसी से छुपा नहीं है कि शिक्षा के क्षेत्र में भी आज तकनीकी का बोलबाला है इसी तकनीकी ने ही हमें एक यंत्र दिया है जिस का नाम है टेबलेट.
आप सब भी इस गैजेट से जरूर वाकिफ़ होंगे.
पर क्या आप को लगता है कि यह छोटा सा यंत्र कक्षा में कभी पाठ्यपुस्तकों का स्थान ले सकता है... मेरा मानना है कि नहीं... यह पुस्तकों का स्थान कभी नहीं ले सकता... चलिए मान लेते हैं कि एक उंगली के इशारे से चंद मिनटों में हमें वो सभी जानकारियां प्राप्त हो जाती हैं जिनकी हमें आवश्यकता होती है...वही पुस्तक में थोड़ा अधिक समय लगता है.
.. परंतु साथियों महसूस कीजिए उस खुशबू को , जो एक नई पुस्तक से आती है.. आ हा हा.. क्या उस खुशबू को हम टेबलेट में महसूस कर सकते हैं? नहीं न....
खरीदने के बाद जब वह पुस्तक घर आती है तो किस प्रकार हम ही नहीं हमारे माता पिता भी उस पर आवरण चढ़ाने, उस पर नाम लिखने बैठ जाते हैं. जबकि टेबलेट के साथ ऐसा नहीं है....
कोई नहीं जानता कि अगले के जीवन में चल क्या रहा है.. इनसे निकलने वाली हानिकारक किरणों से स्वास्थ्य पर बुरा व नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है सो अलग. कहीं कोई गलत साइट खुल गई तो मानसिक स्वास्थ्य भी बुरी तरह प्रभावित होता है...
वहीं पाठ्यपुस्तक के साथ ऐसी कोई सम्भावना या समस्या नहीं है. बल्कि पुस्तकें ही सही रूप में चरित्र निर्माण करने में सहायक होती हैं.... क्योंकि पाठ्यपुस्तकें कई विद्वानों और साहित्यकारों के गहन परिश्रम के बाद ही बाजार में उपलब्ध होती हैं.
इनमें उपस्थित पंचतंत्र की कहानियां, हितोपदेश आदि हमें नैतिकता का सही रूप से पाठ पढ़ाते हैं...
मित्रों, पुस्तकों से हमारी यादें भी जुड़ी होती हैं .जब कभी किसी कोने में पड़ी कोई पुरानी पुस्तक हाथ लग जाती है तो हमारी कई यादें भी ताज़ा हो जाती हैं।...
इसमें न वाई-फाई का खर्च, न बिजली की खपत, और न ही किसी ऐप को इंस्टाल कराने की झंझट...
गलती से गिरकर कहीं टूट फुट जाएं तो हजारों रुपयों का नुकसान अलग...
इसलिए , मैं यह कह सकती हूं कि कक्षाओं में पाठ्य पुस्तकों का स्थान टेबलेट कभी नहीं ले सकता.
पुस्तकें ही हमारी सच्ची मित्र होती हैं जो हमें ज्ञान रुपी वह अनमोल मोती देती हैं जिन्हें पिरोकर हम अपने जीवन को सही आयाम दे पाते हैं।